SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शान्ति जिनेश्वर ! शान्ति करो!!! प्रभो ! पारुल के आत्म की शान्ति करो, हम सर्व जनों की अशान्ति हरो... । परम प्रसन्न प्रशान्ति प्रदान कर, आलोकित जीवनपंथ करो। शान्ति जिनेश्वर ! शान्ति करो !! (बेंगलोर, २२.१०.१९८८) ६. पार क्षितिज से - पार क्षितिज से, दूर दिगन्त से, खोल रहा कौन द्वार? शून्य भवन में, कौन झंकार कर, छेड़ रहा तार सितार? पार क्षितिज से'मुखर' अचानक मौन होकर के, सोये थे एक बार, आज उस मौन महान से उठकर, करता कौन संचार? पार क्षितिज सेपर्दा गिरा था उस दिन यकायक, कर हाहाकार अंधकार, आज उठता है पर फिर वो ही, कर के प्रकाश-बौछार. पार क्षितिज से"काल-क्षेत्र की सीमाएँ सब, अब गई हैं हार, बांध सके क्या कोई मुझ को? मेरा मुक्त विहार ... ।" રર. पारुल-प्रसून
SR No.032322
Book TitleParul Prasun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy