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________________ मूलभूत मौलिक लाक्षणिकताओं की प्राप्ति हेतु पुष्ट करता है। और इस प्रकार वह जीवन की सारी दुष्ट विकृतियों का अंत ला सकता है, शाश्वत शांति, सांत्वना एवं संपूर्णता को प्राप्त कर सकता है, अपनी स्वयंभू और स्वतंत्र, सर्वोच्च, अविरोधी आत्मशक्ति को प्राप्त कर सकता है और इस भौतिक करुण अस्तित्व की अनादि की लड़ाई में विजेता बन सकता है। इसलिये नमस्कार महामंत्र अत्यंत शक्तिमान, सहयोगी एवं समन्वयकारक महाबल है, वह प्रकृति की सरकार के शांति मिशन को बड़ी ही सफलता दिला सकता है। अत: यह नमस्कार मंत्र मूलत: प्रकृति के सायुज्य अनुसंधान, साम्य, ऐक्य में है। इस प्रकार यह अविरोध रूप से सिद्ध हुआ कि प्रकृति और मंत्र-दोनों का अंतिम उद्देश्य-अंतिम लक्ष्य एक ही है। अत: किसी अतिशयोक्ति के बिना, निष्पक्षपातपूर्वक हमें कहना है कि नमस्कारमंत्र का उच्चारण सूचित एवं स्वीकृत किया गया है प्रकृति के द्वारा, जो कि ध्वनि के आध्यात्मिक विज्ञान-चैतन्यविज्ञान में से निष्पन्न-आविर्भूत हुआ है। उसे बौद्धिकतापूर्वक अत्यंत पवित्र वैश्विक महामंत्र कहा जा सकता है और वास्तव में वह एक सर्वसामान्य संपदा (Common Wealth) है जो कि सर्वजन हित-कल्याण के सार्वत्रिक हेतु से बनी हुई है। यह मंत्र न तो किसी विशेष दिव्य आत्मा, देवता, व्यक्ति तक सीमित है, न किसी विशेष जाति, पंथ,संप्रदाय, देश और प्रखंड तक। वह किसी समय और स्थल (Time & Space) की सीमा के पार, अतीत, वर्तमान एवं अनागत के सारे ही पवित्र और सर्व परमोच्च आत्माओं के प्रति अभिवंदना, नमस्कार, प्रणिपात का उद्गम स्रोत है। वह सदा ही हमारे काल्पनिक अवधारण, बौद्धिक पहुँच और मनोवैज्ञानिक अभिगम से परे है। और अंततोगत्वा यह प्रकृति के अंतिम उद्देश्य को पूर्ण करता है। अत: वह स्वाभाविक रूप से ही प्रकृति की सरकार अथवा वैश्विक कानून नियम का मंत्रोच्चारण है। यह महामंत्र, जिसमें कि 68 अक्षर संनिहित हैं, शास्त्र में तीर्थ अथवा पावन स्थान के रूप में माना गया है। मेरे अपने मतानुसार मुझे उसकी मूलभूत विशेषता 68 उपमाएँ परिशिष्ट में प्रस्तुत करने में बड़ी प्रसन्नता देनेवाली प्रतीत होती है। इस नवकार महामंत्र के पांच सूत्र में दर्शित कृपावंत एवं महिमावान दिव्यात्माओं के वृंद के अनुग्रह से मैं कुछ समय में इसकाअत्यंत सरल और स्वीकार्य प्रतिपादन प्रस्तुत करने की आशा रखता हूँ, जिसमें मैं इन विचारों को समझाऊँगा जो सत्वपूर्ण एवं मननीय अर्थसे परिपूर्ण हैं। सभी प्रशांति और पूर्णता प्राप्त करो। स्वामी ऋषभदास पोलाल, रेडहिल्स मद्रास || ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।
SR No.032318
Book TitleNavkar Mahamantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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