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________________ जप, तप, संवर हीन हुं, वली हुं समता होन; करुणानिधि कृपाल हे! शरण राख, हुं दीन. नहि विद्या नहि वचन बल, नहि धीरज गुणज्ञान; तुलसीदास गरीबकी, पत राखो भगवान. आठ कर्म प्रबल करी, भमीओ जीव अनादि; आठ कर्म छेदन करी, पावे मुक्ति समाधि. सुसा जैसे अविवेक हुं, आंख मीच अधियोर; मकडी जाल बिछायके, फंसुं आप धिक्कार. सब भक्षी जिम अग्नि हुँ, तपीओ विषय कषाय; अवछंदा अविनीत मैं, धर्मी ठग दुःखदाय. कहा भयो घर छांडके, तज्यो न माया संग, नाग त्यजी जिम कांचली, विष नहि तजीओ अग. पुत्र कुपात्र ज मैं हुओ, अवगुण भर्यो अनंत; वाहित वृद्ध विचारके, माफ करो भगवंत ! शासनपति वर्द्धमानजी, तुम लग मैरी दोड; 1 जैसे समुद्र जहाज विण, सूजत और न ठोर. भव भ्रमण संसार दुःख, ताका वार न पार; निलभिी सदगुरु बिना, कवण उतारे पार. 1 समुद्रना वहाणना पक्षीने बीजे उडीने जवान स्थल नथी तेम. 64
SR No.032316
Book TitleBbhakti Karttavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1983
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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