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________________ सेवना करी अने त्रण शुभ लेश्यनां लक्षणोनी अने बोलनी विराधना करी, चर्चा, वार्ता, व्याख्यानमां श्री जिनेश्वर देवनो मार्ग लोप्यो, गोपव्यो, नहि मान्यो, अछतानी स्थापना करी प्रवर्ताव्यो, छतांनी स्थापना करी नहि अने अछतानी निषेधना करी नहि, छतानी स्थापना अने अछताने निषेध करवानो नियम को नहि, कलुषता करी तथा छ प्रकारे ज्ञानावरणीय बंधना बोल तेमज छ प्रकारना दर्शनावरणीय बंधना बोल यावत् आठ कर्मनी अशुभ प्रकृति बंधना पंचावन कारणे करी; ब्यासी प्रकृति पापोनी बांधी, बंधावीअनुमोदी, मने करी, वचने करी, काया करी, ते मने धिक्कार, धिक्कार, वारंवार मिच्छामि दुक्कडं. ओक अक बोलथी मांडी कोडाकोडी यावत् संख्यात असंख्यात अनंता अनंत बोल पर्यंत में जाणवा योग्य बोलने सम्यकप्रकारे जाण्या नहि, सद्दह्या-प्ररुप्या नहि तथा विपरीतपणे श्रद्धान आदि करी, करावी. अनुमोदी, मन, वचन काया करी, ते मने धिक्कार, धिक्कार, वारंवार मिच्छामि दुक्कडं. अक अक बोलथी मांडी यावत् अनंता बोलमाँ छांडवा योग्य बोलने छांडया नहि अने ते मन, वचन, 61
SR No.032316
Book TitleBbhakti Karttavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1983
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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