SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री लालाजी रणजीतसिंहजीकृत श्री बृहद् आलोचना दोहा सिद्ध श्री परमात्मा, अरिगंजन अरिहंत ; इष्टदेव वदु सदा, भयभंजन भगवंत. अरिहा सिद्ध समरूं सदा, आचारज उवज्झाय ; साधु सकलके चरनकुं, बंदु शीश नमाय. शासननायक समरिमे, भगवंत वीर जिनंद : *आलिय विघन दूरे हरे, आपे परमानन्द अंगुठे अमृत वसे, लब्धितणा भंडार ; श्रीगुरु गौतम, समरिये, वांछित फल दातार. श्री गुरुदेव प्रसाद से, होत मनोरथ सिद्ध ; घन वरसत वेली तरु, फूल फलन की बृद्ध. पंच परमेष्ठी देव को, भजन पूर पहिचान; कर्म अरि भाजे सबी, होवे परम कल्यान. श्री जिनयुगपदकमल में, मुझ मन भ्रमर बसाय ; कब उगे वो दिनकरूं, श्रीमुख दरिसन पाय. • अनिष्ट, 39
SR No.032316
Book TitleBbhakti Karttavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1983
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy