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________________ शुभ करे फल भोगवे. देवादि गतिमांय ; अशुभ करे नर्कादि फल. कर्म रहित न क्यांय. ८८ समाधान - सद्गुरू उवाच ८९ जेम शुभाशुभ कर्मपद जाण्यां सफल प्रमाण ; तेम निवृत्ति सफलता, माटे मोक्ष सुजाण. वीत्यो काल अनन्त ते, कर्म शुभाशुभ भाव ; तेह शुभाशुभ छेदतां. उपजे मोक्ष स्वभाव. देहादिक संयोगनो, आत्यंतिक वियोग ; सिद्ध मोक्ष शाश्वत पदे, निज अनंत सुख भोग. ९१ शंका - शिष्य उवाच होय कदापि मोक्ष पद नहि अविरोध उपाय, कर्मों काल अनंतनां, शाथी छेद्यां जाय? अथवा मत दर्शन धणां, कहे उपाय अनेक ; तेमां मत साचो कयो. बने न अह विवेक. कई जातिमां मोक्ष छे. कया वेषमां मोक्ष ; अनो निश्चय ना बने, घणा भेद ओ दोष. 32
SR No.032316
Book TitleBbhakti Karttavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1983
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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