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________________ ५६ परम बुद्धि कृष देहमां, स्थूल देह मति अल्प ; देह होय जो आत्मा, घटे न आम विकल्प. जड़ चेतननो भिन्न छ, केवल प्रगट स्वभाव ; अकपणुं पामे नहि, त्रणेकाल द्वयभाव. आत्मानी शंका करे, आत्मा पोते आप; शंकानो करनार ते अचरज अह अमाप. शंका - शिष्य उवाच आत्माना अस्तित्वना, आपे कह्या प्रकार; संभव तेनो थाय छे, अंतर कर्ये विचार बीजी शंका थाय त्यां, आत्मा नहि अविनाश ; देहयोगथी उपजे, देह वियोगे नाश. अथवा वस्तु क्षणिक छे, क्षणे क्षणे पलटाय ; ओ अनुभवथी पण नहीं आत्मा नित्य जणाय. ६१ । समाधान - सद्गुरू उवाच देह मात्र संयोग छ, वली जड रूपी दृश्य ; चेतननां उत्पत्ति लय, कोना अनुभव वश्य? ६२
SR No.032316
Book TitleBbhakti Karttavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1983
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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