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________________ ३१ ओ पण जीव मतार्थमां, निज मानादि काज; पामे नहि परमार्थ ने, अन्-अधिकारी मां ज. नहि कषाय उपशांतता, नहि अन्तर वैराग्य ; सरलपणुं न मध्यस्थता, ओ मतार्थी दुर्भाग्य. लक्षण कह्या मतार्थीनां, मतार्थ जावा काज; हवे कहुं आत्मार्थीनां, आत्म अर्थ सुख साज. W w आत्मार्थी लक्षण ३४ و سه له आत्मज्ञान त्यां मुनिपणुं, ते साचा गुरू होय बाकी कुलगुरू कल्पना, आत्मार्थी नहि जोय. प्रत्यक्ष सद्गुरू प्राप्तिनो, गणे परम उपकार ; त्रणे योग अकत्व थी, वर्ते आज्ञाधार. अक होय त्रण कालमां, परमारथनो पंथ ; प्रेरे ते परमार्थने, ते व्यवहार समंत.. अम विचारी अंतरे, शोधे सद्गुरू योग; काम अक आत्मार्थनु, बीजो नहि मनरोग. कषायनी उपशांतता, मात्र मोक्ष अभिलाष ; भवे खेद, प्राणीदया, त्यां आत्मार्थ निवास. शा न अवी ज्यां सुधी, जीव लहे नहि जोग ; मोक्षमार्ग पामे नहीं, मटे न अन्तर रोग. سه ३८ ३९ 25
SR No.032316
Book TitleBbhakti Karttavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1983
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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