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श्री सद्गुरू भक्ति रहस्य भक्तिना वीस दोहरा
हे प्रभु ! हे प्रभु ! शुं कहुँ, दीनानाथ दयाल हुँ तो दोष अनंतनुं, भाजन छु करुणाळ ।।१।। शुद्ध भाव मुजमां नथी, नथी सर्व तुज रूप नथी लघुता के दीनता, शुं कहुँ परम स्वरूप? ॥२।।
नथी आज्ञा गुरूदेवनी, अचल करी उरमांही आप तणो विश्वास दृढ, ने परमादर नाही ॥३॥
जोग नथी सत्संगनो, नथी सत्सेवा जोग, केवल अर्पणता नथी, नथी आश्रय अनुयोग ।।४।। 'हुँ पामर शुं करी शकुं', अवो नथी विवेक, चरण शरण धीरज नथी, मरण सुधीनी छेक ।।५।। अचित्य तुज माहात्म्यनो, नथी प्रफुल्लित भाव, अंश न अके स्नेहनो, न मले परम प्रभाव ।।६।।