SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अने वीतराग पुरूषना मूळ धर्मनी, उपासना ज अखंड. प्रभु उपासना ० जाग्रत रहो उर म्हारे ! भव- पर्यन्त अ स्हारे, छूटो विषयानंद... ॐ आप कने हे नाथ ! अटलु हुं मागं ते, .................. हुं सेवक तुं स्वामी, पुष्ट निमित्त अनुगामी, सहजानन्द विलास...ॐ (२) सफळ थाओ अभिलाष, मुज सफळ० (२) ५. 91 मंगल दीपक रहस्य जगमग जगमग जगमग दीया, प्रगटाया प्रभु मांगलिक दीया, अपने घट किया मांगलिक दिया, अहम्-मम गालक अर्थ - प्रक्रिया... १. केवलदर्शन ज्ञान स्वकीया, द्विविध चेतना निज रस प्रिया, भ्रम तम विघ्न विनाशक क्रिया, अनंत वीर्य अरि अंत करी; या...२. अनंत चतुष्टय स्वाधीन जीया, मंग-स्व सहजानन्द-पद लीया; मंगल दीप - रहस्य सुधीया ! अन्तरंग विधि अनुभवनीया ३.
SR No.032316
Book TitleBbhakti Karttavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1983
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy