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________________ प्रभु परमात्मा पर ब्रह्म शंकर, शिव शंभु जगदीश ... कये. २. अज अविनाशी अक्षर तारक, दीनानाथ दीनबंधु कये; ओम अनेक रूपे तुं ओक छो, अव्याबाध सुखसिंधु कये. ३. परमगुरू सम सत्ताधारी, सहज आत्म स्वरूप . कये. 'सहजात्म स्वरूप परमगुरू' ओ, नाम रटुं निजरूप . कये. ४. मंदिर मस्जिद के नहिं गिरजाघर, शक्तिरूपे घटमांय कये; परमकृपालु रूपे प्रगट तुं, सहजानन्दघन त्यांय कये. ५. .... ... ( दि. २५ - ९ - १९६९, भाद्र शु. १५, सं. २०२५) ११. पद देवतत्त्व समन्वय :देवाधिदेवपद ओक, ऋषभ प्रभु ! तुझमाँ घंटे छे..... विश्वमां धर्मो अनेक, भिन्न-भिन्न नामे रटे छे... - विष्णु अवतार तुं आठमो अ 88 भागवत ग्रन्थ आख्यान.... ऋ०.
SR No.032316
Book TitleBbhakti Karttavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1983
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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