SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तातै लोभ, मान छल त्यागी, करो शुद्ध हिय-खेत; सुपात्रता सत्संग योग से, सहजानन्द पद लेत .... जीया ४. (दि. ११-२-१९६०) ७. पद अनुभवःसफल थयुं भव मारूं हो, कृपालुदेव! पामी शरण तमारूं हो, कृपालुदेव! कलिकाले आ जम्बु-भरते, देह धर्यो निज-पर-हित शरते, टाळ्यु मोह अंधारूं हो, कृपालुदेव ..। १ धर्म-ढोंगने दूर हटावी, आत्म धर्मनी ज्योत जगावी ; कयु चेतन-जड़ न्यारूं हो, कृपालुदेव । २ सम्यग् दर्शन-ज्ञान-रमणता त्रिविध कर्मनी टाळी ममता सहजानंद लह्म प्यारूं हो, कृपालुदेव....। ३ (दि. १-८-१९६३) ८. पद राज-महिमा :(प्रभु आज चरणों में आये तुम्हारे... ओ ढब) प्रभु राजचन्द्र कृपालु हमारे... मैं हूँ शरणागत नाथ तुम्हारे......... प्रभु०. १. 85
SR No.032316
Book TitleBbhakti Karttavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1983
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy