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________________ राज राज सौ को कहे, विरला जाणे भेद ; जे जन जाने भेद ते, ते करशे भव छेद । ६ अपूर्व वाणी ताहरी, अमृत सरखी सार; वळी तुज मुद्रा अपूर्व छ, गुणगण रत्न भंडार । ७ तुज मुद्रा तुज वाणीने, आदरे सम्यक् वंत ; नहीं बीजानो आशरो, ए गुह्य जाणे संत । ८ बाह्य चरण सुसंतनां, टाले जननां पाप; अंतर चारित्र गुरुराजनु, भांगे भव संताप । ९ श्री सीमंधर जिन वन्दना भावना श्री सीमंधर साहिबा! अरज करूं कर जोड़; शशी दर्शन सायर वधे, वंदना मारी होजो । अनंत चोवीसी जिन नमु, सिद्ध अनंता कोड; जे जिनवर मुक्ते गया, वंदुबे कर जोड़। दोय कोडी केवळ धरा, विहरमान जिन वीश ; सहस्त्र कोटि केवळी नमुं, साधु नमु निशदिश । अनंत काळथी आथडयो, निर्धनियो निराधार, श्री सीमंधर साहिबा! तुम विण कोण आधार?
SR No.032316
Book TitleBbhakti Karttavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1983
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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