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________________ सद्गुरु भक्ति रहस्य बिना नयन पावे नहीं, बिना नयन की बात । सेवे सद्गुरु के चरण, सो पावे साक्षात् ।। बुझौ चहत जो प्यास को, है बुझन की रीत । पावे नहीं गुरुगम बिना, यही अनादि स्थित ।। येही नहीं है कल्पना, येही नहीं विभंग । कई नर पंचम काल में, देखी वस्तु अभंग ।। __ नहीं दे तू उपदेश को, प्रथम लेही उपदेश । सब से न्यारा अगम है, वह ज्ञानी का देश ।। जप तप और व्रतादि सब, तहां लगी भ्रमरूप । जहां लगी नहीं संत की, पाई कृपा अनूप । पाया की यह बात है, निज छंदन को छोड़ । पीछे लग सत्पुरुष के, तो सब बंधन तोड़ ।। ब्रह्मचर्य सुभाषित निरखीने नव यौवना, लेश न विषय निदान । गणे काष्ठनी पुतळी, ते भगवान समान ।। आ सघळा संसारनी, रमणी नायक रूप । ए त्यागी, त्याग्युं बधुं, केवळ शोकस्वरूप ।। एक विषयने जीततां, जीत्यो सौ संसार । नृपति जीततां जीतिये, दळ, पुर ने अधिकार ।। 74
SR No.032316
Book TitleBbhakti Karttavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1983
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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