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________________ ए भोगवे एक स्व आत्म पोते, एकत्व एथी नय सुज्ञ गोते । अन्यत्व भावना ना मारां तन रूप कांति युवती, ना पुत्र के भ्रात ना, ना मारा भृत स्नेहीओ स्वजन के, ना गोत्र के ज्ञात ना; ना मारां धन धाम यौवन धरा, ए मोह अज्ञात्वना; रे! रे ! जीव विचार एम ज सदा, अन्यत्वदा भावना । अशुचि भावना खाण मूत्र ने मळनी, रोग जरानुं निवासनुं धाम ; काया एवी गणीने, मान त्यजीने कर सार्थक आम । समत्त्व बोध मत मोहा, मत खुश हो; मत नाखुश हो अच्छी बुरी परिस्थिति में, मन स्थिरता चाहे जो, सच्चिदानंद सिद्धि के लिए ॥ निवृत्ति बोध अनंत सौरव्य नाम दुःख त्यां रही न मित्रता ! अनंत दुःख नाम सौरव्य प्रेम त्यां, विचित्रता !! 72
SR No.032316
Book TitleBbhakti Karttavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1983
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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