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________________ कलश काव्य सफल थयुं भव म्हारं हो कृपालुदेव। पामी शरण तमारुं हो कृपालुदेव ! कलिकाले आ जम्बु-भरते देह धर्यो निज पर हित शरते, टाल्युं मोह अंधारूं हो कृपालुदेव। ... सफल...॥1॥ धर्म-ढोंग ने दूर हटावी, आत्मधर्म नी ज्योत जगावी, कर्यु चेतन जड़ न्यारं हो कृपालुदेव ! ... सफल...॥2॥ सम्यग्दर्शन-ज्ञान-रमणता, त्रिविध कर्मनी, टाळी ममता, सहजानंद लमु प्यारं हो कृपालुदेव। ... सफल...॥3॥ (सफल हुआ भव मेरा हो, कृपालुदेव। पाकर शरण तुम्हारा हो कृपालुदेव!) ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥ 51
SR No.032315
Book TitleUpasya Pade Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2013
Total Pages64
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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