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________________ अभाव से सम्यक्त्व की उपलब्धि नहीं हो सकती। इसलिए वह होता है। उपर्युक्त तथ्य के अनुसार ही इस देहधारी की प्ररूपण-नीति है। अत: उसमें कोई प्ररूपणा भेद नहीं है, नहीं है तथा फिर भी जिन्हें वह भेद प्रतिभासित होता है, वह तो उन्हीं की बुद्धि का भेद है। ___ शंका :श्रीमद्स्वयं अपने आपको क्या पच्चीसवें तीर्थंकर मनवाते थे? समाधान : नहीं ! परन्तु कुछ निंदक मित्र श्रीमद् का पच्चीसवें तीर्थंकर के नाम से उनका मजाक उड़ाते थे और अब भी उड़ाते हैं। फिर भी उनका मजाक का भाव दूर करके शेष को तलाशें तो वह बात कथंचित् मान्य करने योग्य अवश्य है। शंका : तीर्थंकर तो चौबीस ही होते हैं पच्चीस किस प्रकार से ? समाधान : पच्चीसवाँ तीर्थंकर श्री संघ कहा जाता है, यह बात तो सही है न ? श्री संघ अर्थात् साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका का चतुर्विध समुदाय। यदि सारे समुदाय को पच्चीसवाँ तीर्थंकर मानेंगे तो वह तारेगा किसे ? क्योंकि वह तो स्वयं ही तारकपद ठहरा। वहाँ फिर तार्य-तारक संबंध कहाँ रहा ? उस संबंध के अभाव से तार्यपद और तारकपद ये दोनों भी असिद्ध निश्चित होंगे। इसलिए उसका तात्पर्य अर्थ दूसरा होना चाहिए। तीर्थंकर के अभावकाल में तारकत्व का उत्तरदायित्व वहन करने 48
SR No.032315
Book TitleUpasya Pade Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2013
Total Pages64
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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