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________________ उनकी आत्मचर्या का निरीक्षण करने चलें, हम उनके ही वचनामृत' ग्रंथ में प्रवेश करें___ 'आत्मा ज्ञान को सम्प्राप्त हुआ यह तो नि:शंक है, ग्रंथि भेद हुआ यह तीन काल में सत्य वार्ता है।' - पत्रांक 170 ___ 'अन्तिम स्वरूप समझने में, अनुभव करने में अल्प भी न्यूनता नहीं रही है... परिपूर्ण लोकालोक ज्ञान उत्पन्न होगा... परिपूर्ण स्वरूपज्ञान तो उत्पन्न हुआ ही है।' - पत्रांक 187 'इस जगत के प्रति हमारा परम उदासीन भाव रहता है, वह नितांत सुवर्ण का बन जाए तो भी हमारे लिए तृणवत् है।' - पत्रांक 214 ‘एक पुराण पुरुष और पुराण पुरुष की प्रेमसम्पत्ति के बिना हमें कुछ सुहाता नहीं है, हमें किसी पदार्थ में रुचि ही रही नहीं है, कुछ प्राप्त करने की इच्छा होती नहीं है। व्यवहार किस प्रकार चलता है उसका होश (भान) नहीं है, जगत किस स्थिति में है उसकी स्मृति रहती नहीं है, किसी शत्रु-मित्र में भेदभाव रहा नहीं है, कौन शत्रु है और कौन मित्र है इसका ख्याल रखा नहीं जाता है, हम देहधारी हैं या नहीं इसे जब स्मरण करते हैं तब बड़ी कठिनाई से जान पाते हैं।' - पत्रांक 255 'आत्मा ब्रह्मसमाधि में है, मन वन में है, एक दूसरे के आभास से अनुक्रम से देह कुछ क्रिया करती है।'- पत्रांक 291 'ज्ञानी की आत्मा का अवलोकन करते हैं और उनके समान होते 24
SR No.032315
Book TitleUpasya Pade Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2013
Total Pages64
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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