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________________ अंतर आत्मावस्था का इंगित करनेवाली यह अद्भुत मर्म वाणी अभिव्यक्त की : "नाम सहजानंद मेरा नाम सहजानंद । अगम - देश अलख - नगर - वासी मैं निर्द्वन्द्व ॥ नाम... सद्गुरु - गम तात मेरे, स्वानुभूति मात । स्याद्वाद कुल है मेरा, सद्विवेक भ्रात । नाम... सम्यग् - दर्शन देव मेरे, गुरु है सम्यग् ज्ञान । आत्म-स्थिरता धर्म मेरा, साधन स्वरुप-ध्यान ।। नाम... समिति है प्रवृत्ति मेरी, गुप्ति ही आराम । शुद्ध चेतना प्रिया सह, रमत हूँ निष्काम ॥ नाम... परिचय यही अल्प मेरा, तनका तनसे पूछ। तन-परिचय जड़ ही है सब, क्यों मरोड़े मूंछ ?' अपने बाह्य परिचय बाह्य जीवन से नितान्त उदासीन ऐसे इस महापुरुष का परिचय हम दें भी वया? बाह्य जानकारी अल्प लभ्य है और आंतरिक असम्भव !! यदि उनकी ही अनुग्रहाज्ञा हुई तो यह असम्भव भी सम्भव हो पायेगा और हम उनके बाह्यांतर जीवन की कुछ परिचय-झांकी इस 'दक्षिणापथ की साधना यात्रा' के संधानपंथ में दे पायेंगे । तब तक के लिये इस अवधूत आत्मयोगी द्वारा प्रज्वलित सभी के आत्मदीपों को अभिवन्दना । ४०
SR No.032314
Book TitleDakshina Path Ki Sadhna Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year1985
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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