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________________ भी दिखलायी; यह मेरा सौभाग्य था, क्योंकि यहां किसी को प्रवेश नहीं मिलता ( यह सहज भी हैं; ) हम स्वयं अपनी ही अंतर्गुफा में जाने की क्षमता नहीं रखते। मुनिजी ने गुफा की चंदन, धातु, रत्न की विविध कलात्मक जिन-प्रतिमाएँ भी दिखलाईं। चंदन की प्रतिमा की पूजा दैवी वासक्षेप से हुई थी .... उस पर वह अद्भुत, केसरी-पीला, सुगंधित वासक्षेप था .... विशेष रूप से उस एकांत गुफा में से शांति, नीरवता विकल्प-शून्य स्वरूपावस्था के जो परमाणु निकल रहे थे, वे मुझे ध्यानस्थ कर रहे थे-जागृत रूप में, 'स्व'रूप की ओर। उस गुफा में से सुन्दर, स्थूल प्रतिमाएँ प्रकट हो रही थीं, तो उनकी अन्तरात्मा की सूक्ष्म अन्तर्गुफा में से उनका सूक्ष्म, आन्तरिक स्वरूप । वैखरी-मध्यमा-पश्यंति के स्तरों को पार करती हुई उनकी 'परा' वाणी उनके अन्तर्लोक की ओर संकेत कर रही थी, आत्मा के अभेद परमात्म-स्वरूप को प्रकट कर रही थी। उनकी गुफा एवं उनके अंतर के उस निगढतम स्वरूप तक पहुँचकर, उसका सार पाकर मैं आनन्दित था, कृतार्थ था। इस संस्पर्श के पश्चात् अपनी स्वरूपावस्था को विशेष रूप से जाग्रत करता हुआ मैं अपने देह का किराया चुकाने, आहार रुचि न होने पर भी, भोजनालय की ओर चला। २४
SR No.032314
Book TitleDakshina Path Ki Sadhna Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year1985
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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