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________________ देवों की भी पूज्य माताजी : इनकी साधना सबसे भिन्न है- एक ऊंचे धरातल पर स्थित है। भक्ति के समय इसका प्रत्यक्ष परिचय हर कोई प्राप्त करता है । पूर्णिमा की रात है। दूर-दूर से आये यात्रिक एवं स्थायी साधक गुफा-मंदिर में इकट्ठे हुए हैं। एक तरफ माताएँ एवं दूसरी ओर पुरुषों से गुफा-मन्दिर भर गया है। एक तरफ है खेंगारबापा और दूसरी तरफ आत्माराम चौकीदार के-से अचल । भद्रमुनिजी अंतर्गुफा में हैं, परंतु जैसे-जैसे भक्ति का रंग चढ़ने लगता है, वे भी चैत्यालय एवं श्रीमद् राजचंद्रजी की प्रतिमा के पास आकर बैठते हैं और देहभान भुलानेवाली भक्ति में सम्मिलित होते हैं। मंद वाद्यस्वरों के साथ भक्ति की मस्ती बढ़ने लगती है . . . . बारह-एक बजे तक वह अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच जाती है। गुफामंदिर पूरे समूह के घोष से गूंज उठता है : "सहजात्म स्वरूप परम गुरु ।” देह से भिन्न केवल चैतन्य का ज्ञान करानेवाली, आत्मा-परमात्मा की एकता का दर्शन कराने वाली इस गूंज का प्रतिघोष आस-पास की कंदराओं में सुनाई देता है । चांदनी एवं नीरव शांति के आवरण तले छिपी इस गिरिसृष्टि का दिव्य-सृष्टि में रूपांतरण हो जाता है; और वह स्वर्ग से भी सुन्दर, समुन्नत लगने लगती है। स्वर्ग की भोगभूमि में भी इस योगभूमि-सा परम, विशुद्ध आनंद दुर्लभ है, तभी तो देवतागण की नज़र भी यहीं होती है। १७
SR No.032314
Book TitleDakshina Path Ki Sadhna Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year1985
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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