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________________ पंचभाषी पुष्पमाला अभ्यर्थना ॐ नमः श्री सत् इस विषम काल में परम शांति के धामरूप बालवीर, ज्ञानावतार प्रभु अनेक जीव अलख समाधि प्राप्त करें ऐसी करुणा भावना का चिंतन करते हुए - अनेक पूर्वभवों से चिंतन करते हुए इस भरतक्षेत्र में सूर्य से अधिक प्रकाशमान, प्रगट देहधारी परमात्मा के रूप में अवतरित हुए हैं। उस दिव्यज्ञान किरण के तेजप्रभाव से जगत के जीवों का मोहरूपी अंधकार दूर करने हेतु तथा दुर्लभ मानवजीवन के मुख्य कर्त्तव्य को (वचन ६७०)... ___ “सर्व कार्य में कर्त्तव्य केवल आत्मार्थ है...' यह समझाने हेतु, आत्मा को पवित्रता के पुष्पों से, आत्मगुणों को प्रफल्लित करने हेतु, निर्मल ज्ञानधारा के प्रवाह से प्रत्येक को भूमिकाधर्म से अवगत कराकर ऊर्ध्वगति के परिणामी बनाने हेतु, मंगलदायक एक सौ आठ सुवासपूर्ण वचनरूपी पुष्पों की मोक्षगामिनी माला दस वर्ष की आयु में मुमुक्षुओं के कंठ में आरोपित करते हैं। करुणा की वह मालिनी मेरे हृदय पर शोभायमान हो यही प्रार्थना है। हे नाथ! आपकी सविशेष दया के अंकुर से मेरी विनंती सफल हो यही इस बालक की आर्त्त याचना है...! छुप जिनभारती
SR No.032308
Book TitlePanchbhashi Pushpmala Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2007
Total Pages46
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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