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________________ पंचभाषी पुष्पमाला मार्गदर्शिका निश्चित कर दी है। क्या करना ? क्या नहीं करना ? क्या खाना? क्या नहीं खाना? कैसे जीना ? कैसे नहीं जीना ? कौन सी प्रवृत्ति करनी ? कौनसी नहीं करनी? कैसे बोलना ? कैसे नहीं बोलना ? श्रावक या साधु जीवन में कैसा व्यवहार करना - कैसा नहीं करना ? ये सारी बातें अंततोगत्वा मुमुक्षुत्व और मोक्षमार्ग की ओर ही ले जाती हैं। ११ इस प्रकार श्रीमद् राजचन्द्रजी ने जीवन की किसी भी भूमिका पर स्थित मुमुक्षु, त्यागी या धर्माचार्य, राजा या रंक, वकील या कवि, धनवान या कारीगर, अधिकारी या अनुचर, कृपण या पहलवान, बालकयुवान या वृद्ध, स्त्री- राजपत्नी या दीनजनपत्नी, दुराचारी या दुःखी, कोई भी धंधार्थी हो, वह किसी भी धर्म में मानता हो, उसे प्रतिदिन आज का दिवस - सफल करने के लिए अपना आज का कर्त्तव्य क्या ? इस बात की स्पष्ट क्रममालिका का ग्रथन इस पुष्पमाला में अद्भुत रूप से किया है। इसीलिए ही पू. महात्मा गाँधीजी ने कहा है कि, "जिसे आत्मक्लेश टालना है, जो अपना कर्त्तव्य जानने के लिए उत्सुक है, उसे श्रीमद् के लेखों में से बहुत कुछ मिल जाएगा ऐसा मुझे विश्वास है, फिर चाहे वह हिन्दु हो या अन्य धर्मावलंबी हो । " जिनभारती
SR No.032308
Book TitlePanchbhashi Pushpmala Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2007
Total Pages46
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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