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________________ No. 394) Date छग या नुपने डेटखां प्राहा होयाः सपर्याप्ता नुवोने) - अपर्याप्ता मेडेन्द्रियने : प्राहा होय : कार मायुष्य, डायमण, स्पर्शेन्द्रिय. यासपर्याप्ता बेन्द्रियने ४. घाणा होय: मायुष्य, डायना, स्पर्शेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय यासपर्याप्ता तेन्द्रियने प प्राएाहोय : आयुष्य, डायमण, स्पर्शेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, ध्रायोन्द्रिय. पासपर्याप्ता यरिट्रियने दम प्राशाहोय : !! ! IS सायुष्यायलया, स्पर्शेन्द्रियारसनेन्द्रिय, प्रायोन्ट्रिय,यारिन्द्रिय (मार जपर्याप्तामापयेन्द्रियने !म्राएा होय ! | आयुष्य, डायजण, स्पर्शेन्द्रियारसनेन्द्रिय, प्राणोन्द्रिय, यमुरिन्द्रिय सपने :::. .. !: :., श्रोतन्द्रिय. मा पर्याप्तामपाप्ता नुपणा15 ने नपने जेटली पर्याप्तिमी पूर्ण ऽखानी होय, तेटली पूर्ण उरे तोते "पर्याप्त' हेपाय मनेने लुप स्पयोग्य पर्याप्ति पूर्ण न डरे तोते पर्याप्ती हेवायः . . नेन्द्रिय:- ४.पर्याप्ति, विडटोन्द्रियन्प पर्याप्ति , पंयेन्द्रिय- पर्याप्तिास होय छे. को पर एपल पर्याप्ति पूर्ण हुरे तो पर्याप्त' उपाय यने पर्याप्ति पूर्ण न हुरे तो अपर्याप्त' दुईपाय.. नधिः । पर्याप्ता असती पंयेन्द्रिय = पर्याप्ता संभूरिझम तिर्यय पंयेन्द्रिय पर्याप्तासंती पंयेन्द्रिय = हेव, नारा, गर्ल तिथंय पंयेन्द्रिय, पर्याप्ता) , गर्लक मनुष्य (पर्याप्ता). સંમૂઠ્ઠિમ મનુષ્યો અપર્યાપ્તા હોવાથી તેમને ૩ પ્રાણ હોય છે,
SR No.032283
Book TitleJeevvichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ R Shah
PublisherJ R Shah
Publication Year
Total Pages392
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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