SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .No. Date T ૨૫ ( जूज स्वामिवात्सल्य खाहि तो जंने त्यां सुधी, सांके न राजपां. रात्रिलोभन न थाय, तेनो उपयोग राजवो. सांसारिक प्रसंगोमां यए, सामूहिक रात्रि-लोकन डरायथुं नहीं. के संसारीखोने खुश एखा तमे सामूहिक रात्रिलोभन डरापीने, दुर्भथी लारे थाप छो, ते संसारीखो, शुं दुर्गतिमां भजनारी लयंडर पीडा-पेहनामां लाग पडावयां खावरो ? (22) - ग्राहसां नीथे, तमाडुनां पान राजवाथी, मांडडनी उत्पत्ति थती नथी. घोडावन्ने पाएशीयां मिश्र डरी, खपारनपार, खारसां - पलंग पर छांटता रहेपाथी, मांडडनी उत्पत्ति घती नथी. मांङड थयां होय तो, तमाडुनां पान डे घोडावन्नां पाएगीनो उपयोग न डरखो. तेवां संभेगोमां, सीमडांनां सूडां पान भूडी राडाय. (3) डोर्धया नव्या वापरतां पट्टेलां, भ्याएगापूर्व, झाडु ईश्वी लो. परंतु, कंतुनाशङ हवा पायरवी नहीं. तेनो वेयार पए। डयो नहीं. जाय मनो उपयोग डरतां पूर्वे, मृहुताथी झाडु ईरवी तो. (C) पर्वतिथिरजो रखने पर्युषा खाहि ५ खड्डार्धखोमां, रखनाथ हजं नहीं रखा जधी अजय राजवाथी, निर्दोष डीडी- धनेश वगेरे भवानी हिंसाथी जयी शाशे . ((4) टेबल, पलंग वगेरे डोर्धयए। सामान, कमीन पर घसीने न जेंयो, अंयंडीने इेरपो. जाट, जंग, डब्जा, डब्जी फोरे सुस्त जंध डरीने राजो, अर्ध जुल्लां न राजो. नेधी डीडीनो न यडे रखने तेमनी विराधना न थाय. (জ) धरनां खोरडांनी हिपालो, छत कोरे पए।; 2-3 दिवसे क्यागापूर्वक साइ डरो नेथी, डीडीसोनां नवां हर कोरे जने ४ नहीं. (ত शरीरनां हाथ वगैरे जुल्लां लाग उपर, ड्याय याग, संभ्वाण खाये तो, भ्याणतां पहुंलां, जारीडार्धथी त्यां भेर्ध जो. अथवा
SR No.032283
Book TitleJeevvichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ R Shah
PublisherJ R Shah
Publication Year
Total Pages392
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy