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________________ Date १५५ जरीहवी नहीं. वापरवी नहीं, सेटसे, जभरनो भावो के नेमांथी जनावेल भी हाई આદિ શ્રાવકોએ વાપરવું નહીં.ઘરે બનાવેલ માવો,જો વ્યસ્થિત શૈડીને લાહ્ય डरेल होय त्यारजाहक, ते भावो अथवा तेमांथी जमेल भीकार्ड वापरी शाय रखा रीतें पूरेयुरो साल घोल भावानी भी डाई पाडा, १-८ ध्विसधी वधारे हिवस सुधी न वक्राय तो सारं. खारे समाबेल शाला से इज-इटाहि जेडवार थोपा सभार्या आली हिवसे नये. परंतु सभार्या जाह से व हिवसे वपरार्थ क्युं भेर्धरे. जीभ हिवसे मराय तो मां, ते पानी निगोहनी उत्पत्ति धर्म क्वाथी आपके समारेस इज-कूयहि, जीभ हिवसे न वापराय, परंतु तेव , क्यराय भय तेवी डाज़भगति राजवीखने वधशे खेषु मे लागे तो हीश्मां राजीने, जीरे हिवसे वायरवाने जहले, अर्थ गंरीजने काथवा अर्थ पशुने अपराधी हेकुं, संज्धं समारेल पुलिंगर के हुधा साहि पाए, जीभ हिवसे न जये. उ४५ धानो हलको में टिवसे मनावेल हेय-ते व हिवसे साले, परंतु, जीभ हिवसे मां निगोहनी उत्पति थपानी वात, ज्ञानी लगवंत करतां होवाथी, ते ४ दिवसे धपराय वो मे उपवरसाहभां लीनां घोलां तमाशं जूट-शंपलाहि अथवा तो लीनां न थयेला सेवा तमाशं प्रायेला लूट-शंपल, पर्स, पाकीट, अंग आदि वस्तुको प योभान्सामा खेड जुडो जथवा दुजाटाटियां पडी रहेलाथी, थोडा हिवसोमां, तेमां स्पष्टपों दुग-निगोहाहि सनंता भवानी उत्पत्ति भेवा मजे हे, तेथी भींतां-परसेवा वानां बूटाटि रहीं न मयतेनी राजभ राजवी, दुदृम्य निगोह थ भय तो त्यारमाह, खाचोखाय लील सूपार्थ न भय त्यां सुधा ते वस्तुने पपराय - नहीं, खडाय पाए। नहीं नही सूडाचा भाटे, तडके पए। न रजाय रखने सूमार्ध अथ तेवी छाया न उराय, विशार पए राय न नहीं, 39) परसेवाप्पाणी पाती नवउपरवाजी के इमालाहि वस्तुनो चासोमात्सामां घोडां विसन पथराय खने मे पड़ी रहे तो, लेष्ठ लागीने तेभां चाउरा, घोगं हिवसे, तुरंत निगोह- दूशाहिनी उत्पत्तिः शर्ध भय छे. 39) सागड़ा पधाने तो, पुस्तकअहिमां अथवा खायुर्वेदिक गोगी साहिभां पाए, भे वातावरणानी क्षेत्र लागी भय तो, तुरंत लील- निगोहनी उत्पत्ति थाय 1
SR No.032283
Book TitleJeevvichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ R Shah
PublisherJ R Shah
Publication Year
Total Pages392
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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