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________________ १०४ तो पछी, पंजानी स्वीय, तरत ४, 'शा मारे यालु डरी नाजो? गरमी सहन थती नथी डे पछी गरमी सहन हरवी नथी? लूतझणनां, नरम्नां लवमां, तो खानां डरताय, खनेङगजी गरमी खायो सहन डरेस ४ छे. त्यां घं सहन डरयां छतांय, होर्ध विशेष साल न थ्यो, डारए डे, त्यां नरकमां, पराएो समभुग दिनां, मन जगाडीने, गरमी सहन रेल छे. नरहनी गरमीनी सामे जहींनी गरमी तो, दुर्ध ४ न उहेपाय नहीं खा लवमां, थोडुं सहन ङरयां छतांय, साल घलो भणे, अराएग डे, सामे यासीने, भुवध्यानां जाशयथी सहन उराय छे खेटले हुऐ नही डरो दे, ઘરમાં આવ્યાં બાદ उम से दुभ १५-२० मीनीट मारे, गरमी सहन डरपी छे खने पंजो यासु नथी उरखो. झपशे ने , परसेवो वधु অ पडवाथी शुं भरी न्याय ? अत्यंत अनिवार्य होय ते सिवाय पंजो यालु डरखो नहीं. पंजो , त्यारे या, सीधे-सीधुं 4-5 नंजर उपर न यालु थाय, राजधानी न३२ शुं छे? पंजो यालु दर्या जाह, 10 मीनीट पछी, शुं तमे पंजो बंध डरी हो छो पड़े पछी यालु ने यासु न रहेवा हो ? गरमीनां अयगे, पंजो यालु य जाह, १०-१५ भीनीरमां तो वातावरण खने शरीर जने हुँ पड़ी गयां जाह, तो हुये, पंजो जंध डरी नांजो तो थाली राडे. परंतु, भुवध्यानां परिणामोथी हृदय लावित थयेलन होवाथी, खेड पजत यासुं य जाह, पंजो यासु ने यालु ४ राजधानी ४३२ शुंग छे ? तेथी, ४३२ न सागतां, तर, पंजो डे से सी. नी જયણા ..डरपी. जिनकपुरी खेड मीनीट माटे पए। पधारे यासु न राजवा. पंजामां थती वायुडायनां भवोनी हिंसा डरतांय, खनेङगली पधारे विराधना तो, A. C. पापरवामां थाय छे. झरएा डे, पंखो पापश्वाथी, मात्र पंजानी खानुजानुमा रहेल पायुडायनां भुवोनी न विराधना थाय छे. परंतु, A.C. पापरपाथी, संपूर्ण इममा रहेल, यवननां भुवोनी विराधना थाय छे. डारएा डे, A. C. ना माध्यमथी, पूरा उममां स्हेल स्वालाविङ पवनने ठंडो डरी नांजपात्रां खाये छे. तेथी, A. C. नो डंडो वायु = परडाय शस्त्र श्ये जनीने, पूरां इममां रहेस वायुनां भयाने डिसामना यहोयाडे छे. (4) स्वाला हेरासर - उपाश्रय, घर- - खोइिस खथवा जभरमा नपरां जेहां (5)
SR No.032283
Book TitleJeevvichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ R Shah
PublisherJ R Shah
Publication Year
Total Pages392
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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