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________________ ७६ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन किया था।' पउमचरियं (३४.१४८) में भी कूपचन्द्र को समृद्धशाली गाँव कहा गया है । अतः प्राचीन समय में इसका अस्तित्व अवश्य रहा होगा। नन्दीपुर (१२५.३०)-श्रीवर्द्धन और सिंह की कथा में सिंह नामक राजकुमार मरणोपरान्त नन्दिपुर ग्राम में उत्पन्न होता है (१२५.३०) । इसके अतिरिक्त कोई जानकारी नहीं दी गयी है । नन्दीपुर नाम के अनेक नगर व ग्रामों का उल्लेख मिलता है । साढ़े पच्चीस आर्य देशों में नन्दीपुर को सन्दीव्य की राजधानी कहा गया है। विपाकसूत्र (८, पृ० ४६) में भी नन्दीपुर का उल्लेख है । रामायण में नन्दीग्राम का उल्लेख है (६.१३०)। इसकी पहचान अवध के फैजाबाद से ८-९ मील दूरी में स्थित नन्दोग्राम या नन्दगाँव से की जा सकती है। रगणासनिवेश (४५.१७)--कांचीनगरी के पूर्व-दक्षिण भाग में तीन गव्यूति की दूरी पर रगणा सन्निवेश स्थित था। यह ग्राम मदोन्मत्त भैंसों से व्याप्त विन्ध्याटवी सदृश, बलवान् बैलों की आवाज से महादेव के मन्दिर सदृश, दीर्घशाखाओं वाले वृक्षों से युक्त मलयपर्वत सदृश तथा अनेक गृहपतियों से शोभित आकाशमण्डल जैसा था। उस गाँव में धान की फसल लहलहाती थी, उसके उद्यानों में जनसमुदाय विचरण करता था तथा उसके गोष्ठगण में सैकड़ों गोकुलों का समूह एकत्र रहता था (४५.२०)। कांची नगरी के समीप इसकी पहचान नहीं की जा सकी है। पंचत्तियग्राम (५१५६)--पंचत्तियग्राम नर्मदा के किनारे स्थित था। यह ग्राम अनेक वृक्ष, वेला एवं गुल्म आदि से व्याप्त था। उसके चारों तरफ काटों की बाड़ी लगी हुई थी, जिसे जंगली भैसों ने बड़े-बड़े सींगों से जगह-जगह तोड़ डाला था। वहाँ भील विचरण कर रहे थे। उस गाँव में मानभट अपने पिता के साथ किला बनाकर रहने लगा था (५१.२७) । सम्भवतः यह ग्राम उज्जयिनी के राजा की सीमा से सटा हुआ स्थित रहा होगा, जहाँ मानभट अपनी रक्षा करते रह रहा था। उस गाँव में रसिक युवकजनों का भी निवास था, जो मदनोत्सव पर दोलाक्रीडाएँ आदि करते (५२, अनु० १०-१) । इसकी आधुनिक पहचान नहीं हो सकी है। शालिग्राम (५६.३०)-शालिग्राम वाराणसी के पश्चिम दक्षिण दिशाभाग में स्थित था।" यह ग्राम धन-धान्य से समृद्ध था, वहां के पुरुष कामदेव १. आ० नि०, ३२५. २. डे, ज्यो० डिक्श०, पृ० १३८. ३. तीए वियमहाणयरीए पुन्वदक्खिणा-भाए तिगाउय-मत्ते रगणा णाम सण्णिवेसो कुव० ४५.१७. ४. णहंगणाभोउ जइसओ पयड-गहवइ-सोहिओ त्ति ।- ४५.१९. ५. तीय य महाणयरीए वाणारसीए पच्छिम-दक्खिणे दिशा-विभाए सालिग्गामं णाम गाम-५६-३०.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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