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________________ नगरे ने प्राचीन साहित्य एवं लेखों के आधार पर भिन्नमाल का परिचय कुव० के इण्ट्रोडक्शन में दिया है। उससे ज्ञात होता है कि भिन्नमाल प्राचीन समय से जैनधर्म का प्रमुख केन्द्र रहा है। वर्तमान में जोधपुर राज्य के भिन्नमाल नामक स्थान से इसकी पहचान की जाती है। प्राचीन समय में इसे श्रीमाल कहा जाता था । श्रीमाल के जैन वर्तमान में विभिन्न प्रान्तों में पाये जाते हैं, जो अपने को श्रीमाल मानते हैं।' उद्द्योतनसूरि द्वारा उल्लिखित 'श्रीभिल्लमाल' का यह संक्षिप्तीकरण है। .. हुएनसांग ने भी गुर्जर देश की राजधानी का उल्लेख Pi-ol-mo-ol के रूप में किया है, जिसका अर्थ भिल्लमाल है। किन्तु कुछ विद्वान् इसकी पहिचान बाड़मेर (Balmer) से भी करते हैं ।२। मथुरा (५५.२४)-- कुव० में नर्मदा के किनारे स्थित एक गांव से मथुरा तक की यात्रा का उल्लेख है। बीच में अनेक विषय, नगर, कव्वड, मंडप, ग्राम, मठ, विहार आदि पार करने के वाद जैसे पृथ्वीमंडल का ही भ्रमण हो गया हो, मानभट मथुरा पहुंचा था-(संपतो महुराउरीए, ५५.६) । मथुरा में एक अनाथआश्रम था, जहाँ रोगी, कोढ़ी, भिखारी, यात्री आदि टहरते थे (५५.१०.११)। जैन एवं बौद्ध साहित्य में मथुरा के अनेक उल्लेख मिलते हैं। मथुरा सूरसेन की राजधानी थी तथा उत्तरापथ का महत्त्वपूर्ण नगर था। वर्तमान में प्राचीन मथुरा की पहचान आधुनिक मथुरा से दक्षिण-पश्चिम में ५ मील की दूरी पर स्थित माहोली से की जाती है। मथुरा के आस-पास अनेक प्राचीन अवशेष प्राप्त हुए हैं। __माकन्दी (११७.१)-माकन्दो नगरी कनक निर्मित तुंग तोरणों से अलंकृत तथा स्थूल गोपुर, प्राकार एवं शिखरों से शोभित थी (११७.१) । माकन्दी नगरी में १२ वर्षों का एक अकाल पड़ा था, जिससे वहाँ का जीवन तहसनहस हो गया था (११७.१२) । माकन्दी का जैन साहित्य में काकन्दी नगरी के साथ उल्लेख मिलता है। यह व्यापार का केन्द्र थी तथा दक्षिण पांचाल की राजधानी मानी गयी है। यह गंगा के उत्तर किनारे से चर्मणवती नदी तक के भाग में फैली हुई थी। __ मिथिला (१०१.१४)-कुव० में चूहे की कथा के प्रसंग में केवल एक बार मिथिला का उल्लेख हुआ है (१०१.१४)। मिथिला विदेह की राजधानी १. मजूमदार एवं पुसालकर, हिस्ट्री एण्ड कल्चर आफ इंडियन प्यूपिल, भाग ३, पृ० १५३-५४. २, श्री जिनविजय जी-भारतीयविद्या, जिल्द दो, भाग १-२. ३. क० ए० ज्यो०, पृ० ४२७. ४. ह.-स० क०, भव-छह । ५. डे, ज्यो० डिक्श०, पृ० १४५.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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