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________________ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन राज्य से प्राप्त रनोड़ अभिलेख से ज्ञात होता है कि अवन्तिवर्मन् नाम का एक • राजा हुआ है, जो कि शैवधर्म का अनुयायी था।' तथा मत्तमयूरनाथ (पुरन्दर) का समकालीन था।' डा० बुद्धप्रकाश ने विस्तृत एवं सूक्ष्म अध्ययन के आधार पर अवन्तिवर्मन् का समय ७६२ ई० से ७९७ ई० के मध्य निश्चित किया है ।' तथा यशोवर्मन् के पुत्र प्राम एवं अवन्तिवर्मन् को एक माना है, जिसका ग्वालियर राज्य पर शासन था। अवन्तिवर्मन् का पुत्र पुण्डक था, सम्भवतः या जिसे उद्द्योतनसूरि ने दृढ़वर्मन् कहा है ।" इस अवन्तिवर्मन् से उद्द्योतन द्वारा उल्लिखित अवन्ति राजा की पहचान करना अधिक उपयुक्त है। क्योंकि इसका समय भी उद्द्योतन के समय से मिलता-जुलता है तथा उसका राज्य भी ग्वालियर स्टेट में था, जो सम्भव है उज्जयिनी तक फैला रहा हो। तोरमाण ___ कुवलयमाला में तोरमाण का उल्लेख एक महत्त्वपूर्ण सूचना है। उद्द्योतन के अनुसार पर्वतिका नगरी का राजा श्रीतोरराज (तोरमाण) था, जिसके गुरु हरिगुप्त थे। मुनि जिनविजय जी के अनुसार यह तोरराज हूणों का सरदार तोरमाण ही है । इस आधार पर डा० दशरथ शर्मा का कथन है कि सम्भवतः उद्द्योतन के समय तक एवं उनके कुछ समय पूर्व हूण राजाओं ने जैन मुनियों के सम्पर्क में आकर जैनधर्म स्वीकार कर लिया था। जैनसाहित्य में तोरमाण के १. एपिग्राफिआ इण्डिका, भाग १, पृ० ३५१. २. तत्त्वप्रभावमहनीयतमस्य तस्य शिष्योऽभवज्जगति मत्तमयूरनाथः । निःशेषकल्मषमषीमपहृत्य येन संक्रामितस्यपरमहोनपतेरवन्तेः । -कार्पस् इन्सक्रिप्शनस् इण्डीकरुम, भाग ४, पृ० २१३, श्लोक ४९. 8. In any case, it is patent that this saint lived in the latter half of the eight century and his contemporary Avantivarman flourished at that time. -B. AICS. P. 113-15. It appears that this king (Ama) is the same as Avantivarman, the ruler of the Gwalior region, mentioned above. His real name was Avantivarman and surname Ama, -B. AICS. p. 116. ५. B. AICS. P. 116. ६. द्रष्टव्य-लेखक का निबन्ध-'कुव० में उल्लिखित राजा अवन्ति' अनेकान्त, ___ वर्ष २३, कि० ५-६ ७. जत्थ ट्ठिएण भुत्ता पुहई सिरि-तोरराएण । तस्स गुरु हरिउत्तो आयरिओ आसि गुत्तवंसाओ ॥२८२.६,७॥ If Toraraya of Parvatika might, as suggested by Muni Jin vijaya ji, be identified with the Hopa ruler Tormāna, it can be concluded that some Hūnas actually adopted Jainism as their religion. -s. RTA. P. 102.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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