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________________ ' ऐतिहासिक-सन्दर्भ २. भाग्य के अनुकूल न होने पर अर्थ, विद्या, एवं अन्य हजारों गुण होने पर भी मनुष्य का कार्य नष्ट हो जाता है (१२.२४)। ३. यदि विमल यश की आकांक्षा है तो अपनी प्रशंसा मत करो (४३.३२) । ४. आत्मप्रशंसा दुर्जनों का मार्ग है (४६.३) । ५. धर्म, अर्थ काम से रहित, बुधजनों के निंदक तथा गुणों से हीन ___व्यक्ति मृतसदृश होकर जीते हैं (४८.१४)। ६. सत्पुरुष दीनों पर स्वभाव से ही वत्सल होते हैं (४९.१३) । ७. जो मूढ़ व्यक्ति मन से भी किसी का बुरा सोचता है तो स्वयं उसका ही बुरा होता है (५८.२६) । ८. प्रियविरह, अप्रिय-दर्शन, धनक्षय एवं विपत्तियों में जो नहीं घबड़ाते वे पुरुष हैं, शेष महिलाएँ (५९-७) । ६. हिम सदश शीतल, चन्द्रसदृश विमल तथा मृणाल सदृश मुदु सज्जन पुरुष पद-पद पर अपमानित (खंडित) होने पर भी अपना स्नेह नहीं त्यागते (६३.१०)। १०. आलिंगन किये जाने पर भी लक्ष्मी साहसहीन पुरुषों को उसी प्रकार त्याग देती है जैसे गोत्रस्खलन करनेवाले प्रेमी को उसकी प्रेमिका (६६.१९)। ११. भाग्य के द्वारा जो कार्य निश्चित हो गया है उस पर व्यक्ति को रोष नहीं करना चाहिए (६७.२८) । १२. अपने भुजबल द्वारा सैंकड़ों दुःखों से अर्जित धन का जो दान करता है, वही प्रशंसनीय है, शेष तो बेचारे चोर हैं (१०३.२३)। १३. जिस प्रकार हवा से उड़नेवाला धूल का एक कण भी आंख में गिर जाने से दुःख देता है उसी प्रकार थोड़ा-सा भी अपमान विमल ___ सज्जनों के हृदय को भेद हेता है (१०३.२६)। १४. व्यक्ति के रूप से कुल का, कुल से शील का, शील से गुणों का तथा गुणों से उसकी शक्ति का पता चल जाता है (१०५.२२) । १५. जो कुछ कभी दूसरों के द्वारा न कथा में सुना, न स्वप्न में देखा और न हृदय में स्थित होता है वह भी विधि के द्वारा उपस्थित कर दिया जाता है (१०६.३१) । १६. लोक में जो व्यक्ति धन, मान से हीन एवं अपने अपराध को जानने वाले होते हैं । निःसंदेह उनके लिए विदेश या वन में ही शरण होती है (११८.१३)।
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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