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________________ प्रधान सम्पादकीय प्राकृत भाषा में आगम एवं व्याख्या साहित्य के अतिरिक्त महत्त्वपूर्ण कथा ग्रन्थ भी उपलब्ध हैं । उद्योतनसूरिकृत " कुवलयमालाकहा" प्राकृतकथा का अनुपम उदाहरण है । आठवीं शताब्दी के भारत के सांस्कृतिक जीवन का सम्पूर्ण चित्र इसमें उपलब्ध है । डा० ए० एन० उपाध्ये द्वारा प्रस्तुत "कुवलयमालाकहा " के परिणामस्वरूप यह कृति विद्वत् जगत् में पर्याप्त चर्चित है । इसके सांस्कृतिक अध्ययन की अपेक्षा थी । डा० प्रेमसुमन जैन, सहायक प्रोफेसर, प्राकृत, उदयपुर विश्वविद्यालय ने कुवलयमाला का सांस्कृतिक विवेचन प्रस्तुत कर इस कमी को पूरा किया है । डा० जैन के इस ग्रन्थ से " कुवलयमाला कहा " के प्रायः सभी पक्ष उद्घाटित हुए हैं । प्रस्तुत ग्रन्थ को डा० जैन ने सात अध्यायों में विभक्त किया है। इनमें कुवलयमाला का साहित्यिक स्वरूप, उसमें वरिणत भौगोलिक- विवरण, सामाजिक-जोवन, आर्थिक जीवन, शिक्षा, भाषा और साहित्य, ललित कलाएँ एवं शिल्प तथा धार्मिक जीवन सम्बन्धी तथ्यों का विवेचन व्यवस्थित और तुलनात्मक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। लेखक का निष्कर्ष है कि उद्योतन सूरि ने सदाचार से अनुप्राणित समाज का चित्र इस कथा द्वारा उपस्थित करना चाहा है । व्यक्ति के विकास के बीज नैतिक मूल्यों में निहित रहते हैं, यह इस कथा और कथाकार की निष्पत्ति है । प्राकृत के इस विशाल ग्रन्थ में डा० सुमन की गहरी पैठ है । तभी इतने सांस्कृतिक तथ्यों को कुवलयमाला से एकत्र कर सके हैं । इस ग्रन्थ से ज्ञात होता है कि भारत का विदेशों से व्यापारिक सम्बन्ध था । जल एवं स्थल मार्गों द्वारा व्यापारी दूर-दूर की यात्रा करते थे । उन दिनों विजयपुरी एवं सोपारक प्रमुख मण्डियाँ थीं । समाज में विभिन्न प्रयोजन होते थे । अनेक जातियों का उस समय अस्तित्व था । भिन्न प्रकार के वस्त्र, अलंकार एवं वाद्यों का व्यवहार होता था । विषय को स्पष्ट करने की दृष्टि से डा० जैन ने इन सब के रेखाचित्र भी ग्रन्थ के अन्त में दिये हैं । कुवलयमाला में विभिन्न भाषाओं का प्रयोग हुआ है। अपभ्रंश के विविध प्रयोग इसमें उपलब्ध हैं । लेखक ने ऐसे महत्त्वपूर्ण शब्दों की सन्दर्भ सूची भी इस ग्रन्थ में प्रस्तुत की है। इससे न केवल मूल ग्रन्थ को समझने में सहायता मिलती है वरन् भारतीय भाषाओं के विकास क्रम का ज्ञान भी प्राप्त होता है । इस ग्रन्थ में कुवलयमाला में वर्णित विभिन्न धार्मिक मत-मतान्तरों
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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