SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्रन्थ की कथावस्तु एवं उसकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि भेंट एक मुनिराज से हुई, जिन्होंने विस्तृत पटचित्रों द्वारा संसारदर्शन कराया। इसे देखकर महेन्द्र कुमार ने सम्यक्त्व ग्रहण किया। तदनन्तर कुमार रात्रि में कुछ धातुवादियों से मिला एवं उन्हें स्वर्ण बनाने में सहयोग दिया । अन्त में कुवलयचन्द्र अयोध्या पहुँचा। माता-पिता ने उसका भव्य स्वागत किया और तुरन्त ही उसका राज्याभिषेक कर दिया, जिसकी पूरे नगर ने खुशी मनायी। कुमार को राज्यभार सौंप कर दृढ़वर्मन ने सभी धर्मों की परीक्षाकर उनमें जैनधर्म को श्रेष्ठ मानकर वैराग्य ले लिया और मुनि बन गया। कुवलयचन्द्र ने कुछ वर्षों तक राज्य किया। पद्मकेशर देव (मोहदत्त) उनके यहाँ पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ, जिसका नाम पृथ्वीसार रखा गया । पृथ्वीसार के समर्थ होते ही कुवलयचन्द्र, कुवलयमाला एवं महेन्द्रकुमार ने मुनि दर्पपरिघ से भेंट की, जिससे ज्ञात हुआ कि दृढ़वर्मन् अन्तकृत् केवली हो गये हैं। इन तीनों ने भी फिर दीक्षा ले ली। कुवलयमाला सौधर्मकल्प में उत्पन्न हुई। कुवलयचन्द्र वैडूर्य विमान में देव उत्पन्न हुआ। वहीं मुनि सागरदत्त भी मरणोपरान्त देव होकर पहुँच गये। कुछ समय तक राज्य करने के बाद अपने पुत्र मनोरथादित्य को राज्यभार सौंप कर पृथ्वीसार भी उसी विमान में देव उत्पन्न हुआ। परस्पर परिचय प्राप्त कर उन्होंने मुक्ति प्राप्ति के लिए सबको सम्बोधित करने का फिर निश्चय किया। __ भगवान् महावीर के समय में कुवलयचन्द्र की आत्मा काकन्दी नगरी में राजा कांचनरथ और रानी इन्दीवर के गृह में पुत्र के रूप में उत्पन्न हुई । उसका नाम मणिरथ रखा गया। मणि रथ को शिकार का व्यसन हो गया। एक समय भगवान् महावीर काकन्दी पधारे। उन्होंने श्रोताओं एवं राजा कांचनरथ से कहा कि मणिरथ इसी जन्म से मुक्ति प्राप्त करेगा। एक मृग, जो पूर्व जन्म में मणिरथ (सुन्दरी) का पति था, मणिरथ का हृदय परिवर्तन कर देगा। उसो समय मणिरथ वहाँ आया और अपने पूर्व जन्म की कथा सुनकर उसने वैराग्य धारण कर लिया। भगवान् महावीर जब काकन्दी से श्रावस्ती पधारे तो उन्होंने कहा कि मोहदत्त कामगजेन्द्र के रूप में उत्पन्न हुआ है। वह इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करेगा। तभी वहाँ कामगजेन्द्र पाया और उसने वैराग्य धारण कर लिया। महावीर ने उसे बतलाया कि उसके अन्य चार साथी कहाँ-कहाँ पर हैं। वैडूर्य विमान से सागरदत्त (लोभदेव) ने ऋषभपुर में वज्रगुप्त के रूप में जन्म लिया। ऋषभपुर निरन्तर किसी डाकू द्वारा लूटा जा रहा था। वज्रगुप्त ने सात दिन के अन्दर चोर का पता लगाने का प्रण किया । अन्त में उसने एक राक्षस को पकड़ा जो रोज नगर को लूटता था तथा उस दिन वज्रगुप्त की पत्नी को भी ले आया था। वज्रगुप्त राक्षस को मारकर उसकी सम्पत्ति का उपभोग करने
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy