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________________ प्रमुख धर्म ३७१ भण्डारकर ने नारायण की प्राचीनता एवं वासुदेव व कृष्ण के साथ उनके सम्बन्ध पर विशेष प्रकाश डाला है।' बलदेव-विजयापुरी के पामर मदयुक्त चलायमान दीर्घ-लोचन वाले एवं हल-णंगल से युक्त बलदेव के सदृश थे। बलदेव उत्सव के पूर्ण होने पर सभी धान्य पुष्ट वालियों से पूर्ण हो चुके थे। कृष्ण के साथ बलराम की पूजा भी देश के विभिन्न स्थानों पर होती थी। बलराम की आँखें मदपान के कारण हमेशा रक्तवर्ण रहती थी। हल उनका अस्त्र था, इसी से उन्हें हलधर भी कहा जाता है। बलराम की मूत्तियाँ भी बनायी जाती थीं। दिल्ली में १२वीं सदी की एक बलराम की मूत्तिं प्राप्त हुई है। बुद्ध-कुवलयमाला में बुद्ध शब्द का दो बार उल्लेख हुआ है, (६८.१९, २४३.२६)। प्रथम उल्लेख में स्पष्ट नहीं है कि बुद्ध के नाम से किसे स्मरण किया गया है। क्योंकि आठवीं सदी तक विष्णु के अवतार के रूप में भी बुद्ध को स्वीकार कर लिया गया था । दूसरे उल्लेख में बुद्ध जैन तीर्थङ्कर सीमंधर स्वामी के लिए प्रयुक्त हुआ है, जो अपरविदेह में विराजमान थे। सातवीं सदी तक बुद्ध के लिए जिन शब्द प्रयुक्त हुआ है । सम्भवतः आठवीं सदी में जिन के लिए बुद्ध शब्द प्रयुक्त होने लगा होगा। वैष्णव धर्म के इन देवताओं के अतिरिक्त इस धर्म की किन्हीं देवियों का उल्लेख ग्रन्थ में नहीं है । केवल लक्ष्मी का उल्लेख ग्रन्थकार ने किया है । लक्ष्मी-कुवलयमाला में लक्ष्मी के अनेक सन्दर्भ उपलब्ध हैं। कुछ शोभा एवं सुन्दरता के अर्थ में तथा कुछ धन एवं समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी के रूप में । राजा दृढ़वर्मन् की कुलदेवी का नाम राजलक्ष्मी था, जो उसे पुत्र प्रदान करने एवं श्रेष्ठ धर्म में दोक्षित होने में सहयोग प्रदान करती है। लोभदेव रत्नदीप की यात्रा करके धन कमाने के लिए भद्रश्रेष्ठ को उत्साह दिलाता है कि पराक्रम और साहस करने वाले व्यक्ति के पास ही लक्ष्मी ठहरती है । निरारम्भी (प्रयत्नरहित) होने पर तो लक्ष्मी हरि को भो छोड़ देती है 'जइ होइ णिरारंभो वयंस लच्छीए मुच्चइ हरी वि' (६८.१८) । १. भण्डारकर, वै० शै० धा० म०, पृ० ३५.३६. .. २. मयल-घुम्मिरायवुलोयण णंगल-वियावड वबलदेवुजइसयपामर, कुव० -१४९.१४. ३. बलदेवूसवे णिप्फज्जमाणेसु सव्व-सासेसु बद्ध-कणिसासु कलमासु -१४८.१२. ४. मरुभारती, ७ अंक ४, पृ० ३७, १२.१ पृ० १०७. ५. दंसण-मेत्तेणं चिय भगवं बुद्धाण एत्थ लोगम्मि । मण्णे हं ते पुरिसा किं पुरिसा वण-मया वरई ॥ -कुव०, २४३.२६. ६. कुवलयमाला, द्वितीय भाग (कल्चरल नोट), डा० वी०एस० अग्रवाल, पृ० १२५.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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