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________________ ३३० कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन पड़ता था। साहित्यिक दृष्टि से कुवलयमालाकहा का यह वर्णन परम्परागत है।' किन्तु स्थापत्य की दृष्टि से इसमें भवन के कई मार्गों का उल्लेख है । यथा कोई युवती रक्षामुख पर, कोई द्वार-देश पर, कोई गवाक्ष पर, कोई मालए पर (घर के ऊपरी तल पर), कोई चौपाल में, कोई राजांगण में, कोई दरवाजे की देहलो पर, कोई वेदिका पर, कोई कपोतपाली पर, कोई हर्म्यतल पर, कोई भवन-शिखर पर तथा कोई युवती ध्वजाग्रभाग पर स्थित थी।२ इनमें से अधिकांश की पहिचान प्राचीन साहित्यिक उल्लेखों एवं पुरातत्त्व की सामग्री के अध्ययन से की जा सकती है। गवाक्ष-उद्द्योतन ने इन प्रसंगों में गवाक्ष का उल्लेख किया है। गवाक्ष से कुमार को देखती हुईं स्त्रियाँ (२५.८)। तोसल राजकुमार ने महानगर श्रेष्ठो के धवलगृह के जालगवाक्षविविर के भीतर से मेघों के विविर से निकले हुए चन्द्र सदृश किसी बालिका के मुखकमल को देखा । सुवर्णदेवो मनोहर जीवदर्शन करने के लिए जालगवाक्ष पर बैठी थी। वासभवन को सजाते हुए जाल-गवाक्ष पर आसन और शैया रखी गयी-ठवेसु जाल-गवक्खए अत्थुर-सेज्जं (८३.७) । कामगजेन्द्र की कल्पना जालगवाक्ष जैसी फैल गयी-पसरइ व जालगवक्खएसु (२३८.७)। इस विवरण से ज्ञात होता है कि गवाक्ष भवन के ऊपरी तल पर बनाये जाते थे, जो राज्यपथ पर खुलते थे। जालगवाक्ष उन गोल खिड़कियों को कहते थे, जिनसे भवन में हवा आती-जाती थी। सम्भवतः इस समय तक जाल गवाक्ष कुछ बड़े आकार के बनने लगे थे। डा० कुमारस्वामी के अनुसार गुप्तयुग के वातायन गोल होते थे तभी उनका नाम गवाक्ष (बैल की आँख की तरह गोल) पड़ गया। गवाक्षों से झाँकते हुए स्त्रीमुख न केवल साहित्य में अपितु कला में भी अंकित पाये जाते हैं। अजन्ता की गुफा १९ के मुखभाग में स्त्रीमुखयुक्त गवाक्ष-जालों की पंक्तियाँ अंकित है। मालाए, वेदिका एवं ध्वजाग्रभाग भी गवाक्ष के प्रकार प्रतीत होते हैं। मालए का अर्थ शब्दकोश में घर का उपरिभाग किया गया है। जिसे उर्दू में १. द्रष्टव्य, अ०-का० सां० अ०, पृ० ९२, २. का वि रच्छा-मुहम्मि संठिया, का वि दार-देसद्धए, का वि गवक्खएसुं, अण्णा मालएसुं, अण्णा चौपालएसुं, अण्णा रायंगणेसुं, अण्णा णिज्जूहएसुं, अण्णा वेइयासु, अण्णा कओलवालीसु, अण्णा हम्मिय-तलेसु अण्णा भवण-सिहरेसु, अणा धयग्गेसुति ।--२५.८-९. दिटठं जाल-गवक्ख-विवरन्तरेण जलहर-विवर-विणिग्गयं पिव ससि-बि वयण-कमलं कीय वि बालियाए ।---७३.८, ४. तओ सुदिट्ठ जीव-लोयं करेमि त्ति चितयन्ती आरूढा जाल-गवक्खए-७४.१९. ५. कुमार स्वामी, एन्शेण्ट इंडियन आरकिटेक्चर, पैलेसज, का चित्र । ६. सान्द्रकुतुहलानां पुर-सुन्दरीणां मुखैः गवाक्षाः व्याप्तान्तरा:-रघुवंश, ११.७५ ७. कुमार स्वामी, इंडियन एण्ड इन्डोनेशियन आर्ट, चित्र १५४. ३.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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