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________________ ३०६ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन कि वह सुन्दर है अथवा नहीं।' कलाचार्य भी उसकी इस समीक्षक योग्यता से प्रभावित है । चित्रकला के अन्य ग्रन्थों में इस शब्द का उल्लेख नहीं है। कुव० में उल्लिखित चित्रकला के उपर्युक्त विवरण से ज्ञात होता है कि आठवीं सदी तक चित्रकला पर्याप्त विकसित हो चुकी थी। चित्रकला के स्वरूप एवं विषयवस्तु में भी विविधता थी। यही कारण कि है कि महाकवि बाण को उज्जयिनी की चित्रकला में विश्व के विविध रूप दिखायी दिये-(दशितविश्वरूपा चित्रभित्ति)। तथा उद्द्योतन ने समस्त पृथ्वी की वस्तुओं को चित्रपट में प्रतिबिम्बित दिखाया ही है। १. जाणामि चित्तयम्मं णरिदं दलृ पि जाणामि, १८५.१२ । -दंसेहि मे चित्तयम्म जेण जाणामि सुंदरं ण व त्ति, १८५.१४ ।
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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