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________________ शिक्षा एवं साहित्य २३९ दी गयी है। राशियों की कुल संख्या बारह है-मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धन, मकर, कुम्भ और मीन (१९-१०)। प्रत्येक राशि का फल भिन्न-भिन्न बतलाया गया। कुव० का राशि-वर्णन परम्परागत ज्योतिषशास्त्रों से कितना सादृश्य रखता है, परवर्ती साहित्य को कितना प्रभावित करता है आदि बातें विचारणीय हैं। कुवलयमाला कहा में इस राशिवर्णन को सर्वज्ञ भगवान् के सुशिष्यों द्वारा प्रणीत कहा गया है। बंगाल ऋषि के द्वारा कथित होने से इसे बंगाल-जातक कहते हैं।' ___ उक्त राशि-वर्णन में राशियों के जो फल बताये गये हैं उनकी प्रामाणिकता प्रत्येक राशि के ग्रह नक्षत्र आदि पर निर्भर है। जो राशि स्वयं बलबान होती है एवं जिसका स्वामी ग्रह बलवान होता है उसीका फल सच्चा होता है। और यदि राशि बलवान न हुई तथा क्रूर ग्रहों की उस पर दृष्टि लगी हो तो राशिफल कुछ मात्रा में सत्य एवं कुछ मात्रा में मिथ्या भी हो जाता है।' ___ कुव० में कुवलयमाला के विवाह के अवसर पर विवाह-लग्न का विस्तार से विवेचन किया गया है। सभी ग्रहों की सौम्य दृष्टि होने पर फागुन शुक्ला पंचमो बुधवार को स्वाति नक्षत्र में रात्रि के प्रथम पहर बीत जाने पर द्वितीय पहर की चौथी घड़ी समाप्त होने पर पांचवीं प्रारम्भ होते ही सिंह लग्न समाप्त होता है और कन्यालग्न प्रारम्भ होता है। यही महर्त विवाह के लिए शुभ माना गया है। इस लग्न में विवाहित कन्या को दीर्घकालीन सौभाग्य, करोडों की सम्पत्ति, चक्रवर्ती पुत्र आदि की प्राप्ति होती है (१७०.११,१५) । उद्योतनसूरि ने जन्म और विवाह के अतिरिक्त यात्रा प्रारम्भ करने (६७.२) राज्याभिषेक (१९९.१९) एवं दीक्षा आदि शुभ कार्यों के लिए मी शुभ-तिथि आदि पर विचार किया है। निमित्त-शास्त्र जिन लक्षणों को देख कर भूत और भविष्य में घटित हुई और होने वाली घटनाओं का निरूपण किया जाता है, उन्हें निमित्त कहते हैं। इनका वर्णन जिन शास्त्रों में होता है, उन्हें निमित्तशास्त्र कहते हैं । निमित्त के आठ भेद हैं(१) व्यंजन (२) अंग (३) स्वर (४) भौम (५) छिन्न (६) अन्तरिक्ष १. 'देव, आसि किर को वि सव्वण्णू भगवं दिव्व-णाणी, तेण सुसिस्साणं साहियं तेहि वि अण्णेसिं ताव, जाव बंगाल-रिसिणो एवं तेण एवं बंगाल-जायगं भण्णइ'। २०.२,३. २. जइ रासी बलिओ रासी-सामी-गहो तहेव, सव्वं सच्चं । अह एए ण बलिया कूरग्गह-णिरिक्खिया य होंति, सा किंचि सच्चं किंचि मिच्छं ति ।-२०.२४,२५.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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