SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३० कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन के छात्रों का निवास-स्थान एवं अध्ययन केन्द्र था। इस मठ में वैदिक, बौद्ध, चार्वाक एवं श्रमणदर्शन के अतिरिक्त अन्य सभी विषयों का भी अध्ययन होता था। प्राचीन गुरुकुलों का विकसित रूप इस मठ में देखा जा सकता है। दक्षिण भारत में मठों की परम्परा पर्याप्त विकसित रही है। शिक्षणीय विषय उद्द्योतनसूरि ने उपर्युक्त शिक्षण केन्द्रों में विभिन्न विषयों के पठन-पाठन का उल्लेख किया है। सामान्यतया शिक्षाकेन्द्रों में वे ही विषय छात्रों को पढ़ाये, जाते थे जिनसे उनका बौद्धिक विकास हो तथा जो उनके जीवन में उपयोगी हो ।' कुवलयमालाकहा में शिक्षणीय विषयों से सम्बन्धित जो उल्लेख प्राप्त हैं उनको इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है व्याकरण एवं दर्शन शास्त्र-मठों में रहकर अध्ययन करने वाले छात्रों को व्याकरण एवं दर्शन-शास्त्र का अध्ययन करना अनिवार्य था। इसके साथ अन्य विषयों की भी शिक्षा दी जाती थी। विजयपुरी के सार्वजनिक मठ में जब कुवलयचन्द्र पहुँचा तो उसने वहां की व्याख्यान-शाला का निरीक्षण किया--दिडावो य तेण वक्खाण मंडलीवो (१५०,२४)। वहां प्रत्येक विषय के लिए अलग-अलग व्याख्यान-कक्ष थे । उद्द्योतन ने उनमें पढ़ाये जाने वाले विषयों का सूक्ष्म वर्णन किया है : प्रथम व्याख्यान मण्डप में प्रकृति, प्रत्यय, लोप, आगम, वर्णविकार, आदेश, समास, उपसर्ग के अन्वेषण से निपुण व्याकरण-शास्त्र का व्याख्यान हो रहा था । सम्भव है, पाणिनि, पतंजलि के प्रसिद्ध व्याकरण-ग्रन्थ एवं सिद्धान्तकौमुदी वगैरह का वहाँ अध्ययन होता रहा हो। व्याकरण का अध्ययन १०वीं सदी तक पर्याप्त विकसित हो चुका था। सोमदेव ने इन्द्र, जिनेन्द्र, चन्द्र, आपिशल, पाणिनि तथा पतंजलि के व्याकरण-शास्त्रों के अध्ययन का उल्लेख किया है। ७२ कलाओं में भी व्याकरण को प्रमुख स्थान प्राप्त है। दूसरे कक्ष में बौद्धदर्शन, तीसरे कक्ष में सांख्यदर्शन, चतुर्थ व्याख्यानमण्डप में वैशेषिकदर्शन, पाँचवीं व्याख्यानशाला में मीमांसादर्शन, छठवें कक्ष में न्याय-दर्शन, सांतवे कक्ष में अनेकान्तदर्शन तथा अंतिम आठवें व्याख्यानकक्ष में लोकायत (चार्वाक) दर्शन के प्रमुख सिद्धान्तों का पठन-पाठन होता था। इन सब दर्शनों के सिद्धान्तों की समीक्षा आगे धार्मिक जीवन वाले अध्याय में प्रस्तुत की जायेगी। १. द्रष्टव्य-रामजी उपाध्याय, प्राचीन भारतीय साहित्य की सांस्कृतिक-भूमिका, पृ० १९३.१६०. पयइ-पच्चय-लोवागम-वण्ण-वियारादेस-समासोवसग्ग-मग्गणा-णिउणं वागरणं वक्खा णिज्जइ त्ति (१५०.२५) । ३. जै०-यश० सां०, पृ० १६२.६४.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy