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________________ अर्थोपार्जन के विविध साधन १८५ स्थान पर अक्षय मोक्ष-सम्पदा की प्राप्ति हो सकती है । कुव० में चम्पा के दो वणिकपुत्रों को विभिन्न व्यापारिक कार्य करते हुए दिखाया गया है तथा कुछ कार्यों के धार्मिक प्रतीक प्रस्तुत किये गये हैं । अर्थोपार्जन के विविध साधनों के उपर्युक्त विवरण से ज्ञात होता है कि प्राचीन भारत में धन कमाने के लिए अनेक साधन उपयोग में लाये जाते थे । वाणिज्य, कृषि, शिल्प एवं अनेक विद्याएँ, जिनमें प्रमुख थीं । खान्यविद्या का भी प्रचार था। दूसरी बात यह कि तत्कालीन समाज में काम का बँटवारा जाति के आधार पर कठोर नहीं था । वणिकपुत्र हर प्रकार का धंधा अपना सकते थे । देशी एवं विदेशी सभी प्रकार के व्यापार प्रचलित थे तथा वाराणसी उन दिनों भी तीर्थयात्रियों, पर्यटकों एवं व्यापारियों के लिए आकर्षण का केन्द्र थी । दक्षिण भारत में विजयपुरी एवं पश्चिमी भारत में सोपारक, प्रतिष्ठान आदि व्यापार के प्रमुख केन्द्र थे, जहाँ से स्थानीय एवं सामुद्रिक व्यापार हुआ करता था ।
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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