SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजनैतिक जीवन १६९ करवाल-उद्योतन ने करवाल, करवत्त, करालदन्त जैसे अस्त्रों का उल्लेख संघारक शस्त्रों के रूप में किया है। ये सब तलवार के विभिन्न रूप प्रतीत होते हैं। इन्हें कटारी का प्राचीन रूप माना जा सकता है। सोमदेव ने कौक्षेयक और करवाल को एक माना है (यश०, पृ० ५५७) । कस-यह एक प्रकार की कड़ी रस्सी थी, जिससे शत्रु को बाँध लिया जाता था। इसे पाश अथवा रज्जू (२३१.१६) भी कहा गया है। भारतीय साहित्य में इसके अनेक प्रकार प्राप्त होते हैं।' उद्योतन ने दर्पसायणबंध का उल्लेख किया है (१३६.२६), जो कस का एक प्रकार रहा होगा। करालदंत-यह दाते की बनी हुई लोहे की लम्बी पत्ती होती है, जिसे आजकल करोंत कहा जाता है। प्राय: यह लकड़ी चीरने के काम आती है, किन्तु सम्भव है प्राचीन भारत में इसका प्रयोग युद्ध में भी होता रहा हो (२२३.२५) । कुहाड़ा-इसका अपर नाम कुठार अथवा परशु है, जिसे आजकल कुल्हाड़ी कहते हैं। सोमदेव ने इसका काफी उल्लेख किया है। कला में कुठार का अंकन पाया जाता है।२ शिल्प में भगवान् शंकर के अस्त्र के रूप में कुठार या परशु अंकित किया गया है। कुन्त-उद्योतन ने कोन्त अथवा कान्तेय के रूप में इसका उल्लेख किया है। कुन्त एक प्रकार का भाला था, जो सीधे और अच्छे बाँस की लकड़ी में लोहे का फन लगाकर बनाया जाता था। इसका प्रकार शत्रु के वक्षस्थल पर किया जाता था। खड्ग, खड्गखेटक-कुवलयमाला में इसका अनेक बार उल्लेख हुआ है। शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए खड्गखेटक को अमोध शस्त्र माना जाता था। खड्ग तलवार का कोई प्रकार था, जिसे हाथ में लेकर लड़ा जाता था (२५२.२७) । चक्र -प्राचीन भारतीय युद्ध-विज्ञान में चक्र का प्रमुख स्थान था। यह पहिये की तरह गोल आकार का धारयुक्त लोहे का आयुध था। इसे जोर से घुमाकर शत्रु के सिर का निशाना बनाकर फेंका जाता था। कुशलतापूर्वक फेंके गये चक्र से हाथियों तक के सिर फट जाते थे। उद्द्योतन ने चक्र का चार बार उल्लेख किया है। वर्तमान में सिक्ख लोग लगभग १० इंच व्यासवाला तथा १॥ इंच मोटी धारवाला चक्र दायें हाथ में लेकर अपना उत्सव मनाते हैं। १, चक्रवर्ती-द आर्ट आफ वार इन एंशियेण्ट इण्डिया, पृ० १७२. २. शिवराम मूर्ति-अमरावती, फलक १०, चित्र, ३. ३. बनर्जी, वही, पृ० ३३०, फलक १, चित्र १६, १९, २१. ४. यशस्तिलकचम्पू, पृ० ५५९. ५. वही, पृ० ५५८.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy