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________________ अलंकार एवं प्रसाधन १६३ केशप्रभार-कुवलयमाला में केशप्रभार का उल्लेख तीन बार हुआ है। भगवान महावीर के केशपब्भार की रचना इन्द्र ने की थी। राजा पुरन्दरदत्त ने पहले सुगन्धित तेल बालों में लगाया। फिर प्रकृति से काले एवं धुंघराले वालों को जैसे क्रोध से उठ खड़े हुए हों इस प्रकार उनका जूड़ा बांधा। तदनन्तर अनेक प्रकार के पुष्पों की माला सिर पर धारण की ।२ कुवलयचन्द्र के सिर पर काले केशों का जूड़ा सुशोभित हो रहा था (१८२.७) । ___ केशपब्भार का अर्थ है, केशसमूह । केशों के समूह को चतुराई-पूर्वक बांधना केशपब्भार-विन्यास कहा जाता होगा, जिसे केशपाश भी कहा गया है। अमरकोश में उठे हुए बालों को केशपाश कहा गया है (२.६.९७)। उक्त वर्णन से ज्ञात होता है कि केशपब्भार-विन्यास में वाल इस प्रकार उठाकर बांधे जाते होंगे कि वे मुकुट सदृश दिखायी दें। बँधे हुये बालों में पुष्पों को खोंस लिया जाता होगा। सोमदेव ने ऐसे केशविन्यास को शिखण्डित केशपाश कहा है (यश० प० १०५) । मानसार के अनुसार इस तरह के केशविन्यास का अंकन सरस्वती और सावित्री की मूर्तियों के मस्तक पर किया जाता है। जटाकलाप-शबर-युगल कोमल दीर्घलता से उद्धित जटाओं के समूह को बाँधकर अनेक वनवृक्षों के पुष्पों द्वारा उसको सजाये हुये था। यह जूड़ा बाँधने की आम पद्धति थी। चड़ालंकार-शवरी श्वेत मयूर की पूंछ से तैयार किये गये चड़ालंकार द्वारा शोभित हो रही थी-सिय-सिहि-पिच्छ-विणिम्मिय-चूडालंकार-राइल्लं(१२८-२१)। जूड़े को पुष्पों आदि के द्वारा मोरपिच्छ की शोभासदृश वनाना प्राचीन समय से प्रचलित था। सम्भवतः पहले बालों को शिरीष की माला से सुविभक्त करके बाँध लिया जाता था। वाद में उसके बीच-बीच में अनेक पूष्पों को इस प्रकार खोंसते थे, जिससे मयूरपिच्छ के ताराओं की पूर्ण अनुकृति हो जाये। ऐसे केशविन्यास को सोमदेव ने कुन्तलकलाप कहा है। कुव० में वासछर की रमणियाँ इस प्रकार का केशविन्यास कर अपने पति की प्रतीक्षा करती थीं (८३.८) । मयूरपिच्छ सदृश केशविन्यास का अंकन कला में भी मिलता है। १. स-हरिस-हरि वासद्धत-भूसणो केशपन्भारो-कुव० १.५. २. तओ सुयंध-सिणेहो....परिहिय मुंडे मालुल्लिया-८४.१४, १६. ३. जे० एन० बनर्जी- द डवलपमेंट आफ हिन्दू आइकोनोग्राफी, पृ० ३१४. कोमल-दीहर-वत्ली-बद्धद्ध-जडा-कलाव- सोहिल्लं । णाणाविह-वण तरुवर-कुसुम-सयाबद्ध धम्मेल्लं ॥ -कुव० १२८.१९. ५. जै०-यश० सां०, पृ० १५४. ६. कला और संस्कृति, पृ० २४८.४९.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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