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________________ अलंकार एवं प्रसाधन १६१ माला-स्नान के बाद चन्दन के पाउडर को शरीर पर छिड़ककर सुमनों की माला पहनी जाती थी (१४.८) । सुमनमाला के सदृश धातुओं का भी मालाहार पहिना जाता था। आदिपुराण में ऐसे मालाहार का वर्णन है, जिसके गुरियों में नक्षत्रों के चिह्न बने थे। अतः उसे नक्षत्रमालाहार कहा गया है । स्त्री-पुरुष दोनों ही इसे पहिनते थे। मुक्तावली-कुव० के कंठ में सुन्दर मुक्तावली शोभती थी (१०२.२४)। मुक्ताओं की एक लड़ी की माला मौक्तिकहारावली अथवा मुक्तावली कहलाती थी। इसमें आँवले जैसे गोल मोती लगे रहते थे । शुंगकालीन मूत्तियों में मौक्तिक हारावली का अंकन पाया जाता है।' कुव० के उल्लेख से स्पष्ट है कि मुक्तावली स्त्रियों का आभूषण था। अमरकोष (२.६.१०६) एवं यशस्तिलकचम्पू (पृ० २८९) में इसी को एकावली भी कहा गया है। कुव० में मुक्ताहारों का भी उल्लेख है (६.२३, २३२.९) मणिमेखला-मणिमेखला का तीन बार उल्लेख हुआ है, जिनमें उसे सुन्दर शब्द करनेवाली कहा गया है-रणंत महामणि-मेहलउ (५०.१७) । इस आभूषण का मेखला नाम कमर में वाँधने से पड़ा है। यह चौड़ाई में पतली होती है । आदिपुराण (१५.२३) एवं यशस्तिलकचम्पू (पृ० १००) से ज्ञात होता है कि मेखला में छुद्र घंटिकाएँ लगी रहती थीं, जो कामिनियों के चलने पर शब्द करती थी। वर्तमान में इन घंटिकाओं की संख्या लगभग ८४ होने से मध्यप्रदेश में इसे चौरासी भी कहा जाता है इसका दूसरा नाम करधनी है। रत्नावली-रत्नावली में नाना प्रकार के रत्न गूंथे जाते थे और मध्य में एक बड़ी मणि जटित रहती थी (आदिपुराण १६.५०) । कुव० के अनुसार रत्नावली पुरुष एवं स्त्रियाँ दोनों पहिनते थे (८३,२४) । अन्य प्रसंगों में रत्न से बने हुए अन्य अलंकारों का भी उल्लेख है । (१६०.३६) । रसना-रसना भी स्त्रियों के कटिप्रदेश का आभूषण है। अमरकोष में (२.६.१०८) कांची, मेखला, रसना को पर्यायवाची माना है, किन्तु इनके आकार-प्रकार में अन्तर था। मेथला और रसना में घंटिकानों की आकृति से भिन्नता मालूम पड़ती थी। कुव० में रसना के पाँच उल्लेख हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि रसना वजने वाला कटि का आभूषण था । रूण्णमाला और वनमाला-ये सम्भवतः कंठ अथवा वक्षस्थल के आभूषण थे। रूण्णमाला गमन करने पर बजती थी। बनमाला किसी हार का अपर नाम होगा । वैजयन्तीमाला एक लम्बी लटकती हुई गले की माला थी (१९४.१०)। वलय-वलय हाथ में पहिना जाने वाला आभूषण था। कटक और वलय में भिन्नता थी। मणियों से निर्मित वलय नृत्य करते समय सुन्दर तालसे १. अ०-ह० अ०, पृ० १५८.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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