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________________ १५६ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन भाग को ढकने के लिए प्रायः उत्तरीय, पटांशुक, फालिक, दुकूल, आदि को धारण किया जाता था । स्त्रियाँ स्तनवस्त्र (विना सिली चोली), दुपट्टा, पिछोरा एवं उत्तरीय के अतिरिक्त सिला हुआ कूर्पासक भी पहिनती थीं । अधोवस्त्रों में कच्छा, धोती का फर्द, पोत एवं साटक प्रयोग में लाये जाते थे । अन्य उपयोगी वस्त्रों में गमछा, दुपट्टा, रूमाल, चादर, धुस्सा, कम्बल, चंदोबा, आसन आदि प्रचलित थे । न केवल भारत में बने अपितु चीन आदि देशों से आयात किये हुए वस्त्र भी तत्कालीन समाज में व्यवहृत होते 1 विभिन्न वेष कुव० में अनेक वस्त्रों के उल्लेख के साथ ही विभिन्न व्यक्तियों की वेशभूषा का भी वर्णन किया गया है, जिससे तत्कालीन पहिनावे सज्जा आदि पर प्रकाश पड़ता है । प्रमुख वेषधारी निम्न प्रकार हैं : :― तीर्थयात्री के वेष (५८. १, २), शबरदम्पति ( १२८.१९, २३), शवरवेष १३३.३, ४), शबरी का वेष (१२८.२५, १३३.४), भिखारी का वेष (१६३.६), मातंग का वेष (१३२.२), कापालिक का वेष (१३२.२), महायति (२०९.१०), ब्राह्मण-बालक (२५८.१३), अभिसारिका (८६, २३), छद्मवेष राजा ( ८४.१२, २१), भोगावती धातृ ( १६१.२५ ) एवं वंजुल का वेष (१६८.१२ ) । सम्बन्धित अध्यायों में इन वेषधारियों का विशेष परिचय दिया गया है । शवरदम्पति और भिखारी का वेष इस प्रकार था : शबरदम्पति का वेष - एणिका के समीप जो शवरदम्पत्ति श्राया वह लताओं से जटाओं को तथा सुन्दर पुष्पों से केशराशि को सजाये हुए था । श्याम कांति वाले शरीर में श्वेत, पीत एवं रक्तवर्ण से लेखरचना की गयी थी । मोरपंख से चूडालंकार बनाया गया था। हाथी के मद से आलेख रचा गया था तथा वह वल्कल पहिने हुए थे ( १२८.१९, २३) । शबरी चन्दन एवं हाथी दांत के आभूषण पहिने तथा श्वेत चंवर को धारण किये हुए अयोध्यापुरी जैसी लग रहीं थी (१२८.२५) । शबरी गुंजाफल की मालाएँ भी पहिनती थीं ( १३३.४)। भिखारी का वेष - उद्योतन ने एक प्रसंग में आध्यात्मिक भिखारी का चित्रण किया है, जिसके अनुसार भिखारी कच्छा पहनकर कंधे में काँवर रख कर हाथ में पात्र लेकर भिक्षा माँगते थे ( १९३.६ ) । इस प्रकार उद्योतन ने प्रसंग के अनुसार पात्रों की वेषभूषा का भी पर्याप्त ध्यान रखा है । अभिसारिका काले वस्त्र, तीर्थयात्री भगवे वस्त्र, शबरलोग बल्कल, राजा काली किनारी की धोती तथा भिखारी कच्छा पहिनता था । इससे ज्ञात होता है कि वस्त्रों की भिन्नता अवस्था और स्थिति भेद के कारण भी हो जाती थी ।
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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