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परिच्छेद चार वस्त्रों के प्रकार
उद्द्योतनसूरि ने कुवलयमाला में प्रसंगवश ऐसे अनेक वस्त्रों का उल्लेख किया है, जो प्राचीन भारतीय समाज में प्रचलित थे। वस्त्रों के प्रकार एवं स्वरूप का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि न केवल देशी वस्त्र व्यवहार में आते थे अपितु व्यापारिक समृद्धि के कारण अनेक विदेशी वस्त्र भी समाज में प्रचलित हो गये थे। उद्द्योतन द्वारा उल्लिखित वस्त्रों के प्रसंग में प्रयुक्त शब्दों की सूची इस प्रकार है :
१. अर्घसवर्णवस्त्रयुगल (८४.८) २. उत्तरीय (२५.१६, १५६.३०) ३. उपरिपटांशुक (७४.६) ४. पटांशुकयुगल (२०९.१०) ५. उपरिमवस्त्र (५३.४, ९३.५) ६. उपरिस्तनवस्त्र (७६.१६) ७. कंठ-कप्पड (१०५.२) ८. कंथा-कप्पड (६३.७) ९. जीर्णकथा (४१.२५) १०. कंबल (१६९.१३) ११. कच्छा (१९३.६ ) १२. कसिणायार (८४.१०) १३. कसिणपच्छायण (८४.१०) १४. कुस-सत्थर (१४.१८)