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________________ १३२ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन नवमी-महोत्सव के लिए बलि देने हेतु किसी गृहस्वामी द्वारा पकड़ लिया गया था और जब घर के सब लोग नवमी का स्नान करने नदी में गये तो वह पहरेदार की आँख बचाकर भाग आया है।' दूसरे प्रसंग में वर्षाऋतु के बाद महानवमी महोत्सव किये जाने का उल्लेख है (१४८.११)। महानवमी महोत्सव के प्राचीन साहित्य में अनेक उल्लेख मिलते हैं । डा० हन्दिकी ने इस महोत्सव के सम्बन्ध में विशेष अध्ययन किया है। महावमी की तिथि के सम्बन्ध में समान उल्लेख नहीं है। यशस्तिकचम्पू के अनुसार चैत्रसुदो नवमी को यह उत्सव होता था, जबकि पार्श्वनाथचरित में चैत्र और आश्विन माह की नवमीं को यह उत्सव मनाने का उल्लेख है। उद्द्योतन ने भी वर्षाऋतु के बाद आश्विन माह में ही इसका उल्लेख किया है। महानवमी को स्नान करने एवं बलि देने के भी उल्लेख मिलते हैं, किन्तु नरबलि का उल्लेख कुवलयमालाकहा के अतिरिक्त अन्य ग्रन्थों में नहीं मिला। इस उत्सव में चामुण्डा अथवा दुर्गा की पूजा होती थी। धीरेधीरे शक्ति का प्रतीक होने से यह राज्योत्सव के रूप में मनाया जाने लगा था। दीपावली-दीपावली उत्सव प्रकाश का पर्व प्राचीन समय से ही रहा है। हिन्दू एवं जैन इसे अपने-अपने ढंग से मनाते रहे हैं। धार्मिक पृष्ठभूमि इसके साथ आज भी बनी हुई है। इजिप्ट में भी दीपों का त्योहार मनाया जाता है, जो दीवाली की तरह धार्मिक त्योहार है। उद्योतन ने दीपावली का मात्र उल्लेख किया है (१४८.११) । बलदेवोत्सव-वर्षाऋतु की समाप्ति पर यह उत्सव मनाया जाता था। यह आश्विन एवं कार्तिक माह में धान की फसल काटने एवं गेहूँ वोने के समय होता है। बलदेव हलधर होने के नाते कृषि के देवता के रूप में इस उत्सव में पूजे जाते रहे होंगे। जिससे अन्न का उत्पादन अच्छा हो । कौमुदीमहोत्सव-ऋतुओं से सम्बन्धित उत्सवों में कौमुदीमहोत्सव वसन्तोत्सव एवं मदनोत्सव प्रमुख हैं। उद्योतनसूरि ने इन तीनों का उल्लेख किया है। सागरदत्त की कथा के प्रसंग में कौमुदीमहोत्सव का वर्णन किया गया है, जिसे उद्द्योतन ने शरद-पूर्णिमामहोत्सव कहा है-सरय-पोण्णिमा-महूसवं पेच्छमाणस्स (१०३.३२) । अतः यह उत्सव दोपावली के १५ दिन पूर्व शरदपूर्णिमा को मनाया जाता था। वामनपुराण (९२.५८) में दीपावली को ही १. सुहय, इमाए णवमीए अम्ह च ओरुद्धा देवयाराहणं काहिइ। तीए तुम बली कीरिहिसि, ५९.३३.-हिज्जो णवमीए सम्बो इमो परियणो सह सामिणा ण्हाइउं वच्चीहि ति ६०.३. २. पुरुषार्थचिन्तामणि, पृ० ५९; गरुडपुराण, अध्याय १३४; देवीपुराण अ० २२; हर्षचरित अ० ८; यशस्तिलकचम्पू, पार्श्वनाथचरित अ० ४ आदि । ३. ह०-यश० इ० क०, पृ० ४००. ४. वही, पृ० ४०२, (नोट्स) ।
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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