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________________ सामाजिक आयोजन १२९ विवाहोत्सव सामाजिक जीवन में विवाहोत्सव का महत्त्वपूर्ण स्थान है । वर-वधू दोनों के माता-पिता इस अवसर पर उत्साहपूर्वक इस आयोजन को सम्पन्न करते हैं । उद्योतनसूरि ने कुव० में केवल एक बार विवाहोत्सव का वर्णन किया है, किन्तु इतना सूक्ष्म कि उसे पढ़ने से लगता है मानों आँखों के सामने विवाह हो रहा हो । कुमारी कुवलयमाला का विवाह निश्चित हो जाने पर राजभवन में निम्न तैयारियां होने लगीं : ज्योतिषी को बुलवाकर विवाह का मुहूर्त निकलवाया गया । ज्योतिषी ने फागुन सुदी पंचमी बुधवार को स्वाती नक्षत्र में रात्रि के प्रथम पहर बीत आने एवं द्वितीय प्रारम्भ होने के समय लग्न का मुहूर्त बतलाया । लग्न का समय आते ही विभिन्न तैयारियाँ प्रारम्भ हो गयीं । धान दरवाई गयी । उसे साफकर चावल तैयार किये गये । विभिन्न प्रकार की मिठाइयाँ बनवायीं गयीं । अन्य खाद्यपदार्थों को एकत्र किया गया । कुम्हारों के यहाँ से वर्तन मँगाये गये । मंचशाला तैयार करायी गयी । धवलगृह को सजाया गया । वरवेदिका रची गयी । बन्दनवार बंधवाया गया । - रत्नों की परीक्षा करवायी गयी । हाथीघोड़ों को सजाया गया । राजा लोगों को निमन्त्रण भेजे गये । लेखवाहक भेजे गये। बन्धुजनों को आमन्त्रित किया गया, भवनों के शिखर सजाये गये, भित्तियों पर सफदी की गयी, गहने बनवाये गये, यवांकुर रोपे गये, देवताओं की अर्चना की गयी, नगर के चौराहे सजाये गये, कपड़ों के थान फाड़े गये, कूर्पासक सिलवाये गये, पताकाएँ फहरायीं गयीं तथा मनोहर चँवर तैयार कराये गये । यहाँ तक कि उस नगर में कोई ऐसी महिला व पुरुष नहीं था, जो कुवलयमाला के विवाह कार्य में प्रसन्नतापूर्वक व्यस्त नहीं था । विवाह की लग्न के आते ही कुवलयमाला की माता ने अपने होनेवाले जमाई को स्नेहपूर्वक स्नान करवाया । अपने वंश, कुल, देश, समय एवं लोकानुसरण के अनुसार मांगलिक कौतुक किये । श्वेत वस्त्र पहिना कर तिलक किया, कंधे पर श्वेत पुष्पों का हार पहिनाकर महेन्द्र के साथ कुवलयचन्द्र को विवाह मण्डप में लाया गया ( १७१.१, २) । कुवलयमाला भी श्वेतवस्त्र धारण कर मांगलिक मोतियों के गहने पहिन वेदी पर बैठ गयी । समय होते ही अग्निहोत्रशाला में अग्नि प्रज्वलित की गयी, क्षीरवृक्ष की समिधा और घी की आहूति दी गयी । कुल के वृद्धजनों के समक्ष राजा के सामने, अनेक वेदपाठी ब्राह्मणों के बीच में लोकपालों को श्रामन्त्रित किया गया, दढ़वर्मन् का नाम लेकर कुमार १. मुसुमूरिज्जंति घण्णाई. . रइज्जति चारुचामरीपिच्छपब्भराई ति - कुव० १७०.२१, २५. २. सो णत्थि कोई पुरिसो महिला वा तम्मि णयर - मज्झम्मि । जो ण बिहल्लप्फलओ कुवलयमाला - विवाहेण ॥ - वही० १७०.२७.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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