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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१८/५६ काले कारनामों से नहीं चूकते। .. ... १. नागरिक – दीवानजी को फांसी देना भी इसी का नमूना है। करें भी क्या बेचारे ? वीरता उनमें है नहीं। सिंह की तरह आक्रमण करना क्या जानें ? २. नागरिक - क्षमता हो तब न , कायर... (दांत पीसता है) क्षमा करना भाई, एक बात कहूँ। गलती अपनी है। वे हम लोगों को आपस में लड़ाकर कभी इस पक्ष, कभी दूसरे पक्ष का समर्थन कर मनचाहा लूटते हैं और राज्य वृद्धि करते हैं। १. नागरिक – भारतवासियों की थोड़ी ना-समझी से ही वे भारत को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचा रहे हैं। तमाशा यह कि उनकी फौज की भी हानि नहीं होती। वैतनिक भारतीय सेनाओं को ढाल बनाकर लड़ते हैं। लड़ने में भारतीय आगे, विजय मिली तो सेहरा फिरंगियों के सिर । हार हुई तो जान बचाकर भागने में पहला नम्बर। . २. नागरिक - अपने ही भाईयों के कारण ही अब पग-पग पर लज्जा और अपमान का सामना करना पड़ रहा है। अन्याय और अत्याचार के जहरीले प्याले पर प्याले हम चुपचाप पिए जा रहे हैं, तब भी नहीं जागते। 'अपनी बिल्ली, अपने से ही म्यांयु। १. नागरिक - सुनने में आया है कि राजा साहब की अर्जी पर वे इतनी सुविधा देने को तैयार हुए हैं कि फांसी के समय बड़े दीवानजी व पुत्र फतेहलाल सींखचों के पार खड़े रह सकते हैं। २. नागरिक - कब जाओगे सांगानेर ? १. नागरिक – एक पहर रात्रि रहे बैलगाड़ी से चल पड़ेंगे। २. नागरिक – मुझे भी साथ ले लेना। अच्छा नमस्ते। (प्रस्थान) दृश्य अष्टम फाँसीघर (फाँसीघर के अन्दर बैठा चांडाल मोम का लेप कर रस्सी चिकनी कर रहा है। सींखचों के पार झूथारामजी व फतेहलाल उदास मन खड़े हैं।
SR No.032267
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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