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________________ - जैनधर्म की कहानियाँ भाग-17/47 हाथी रहते थे। एक समय वे दोनों हाथी उसी प्रदेश की विशाल नदी में गये और दोनों जल के लिए परस्पर लड़ पड़े। वे इतने जोर से लड़े कि लड़तेलड़ते मर गये। . . .. मरकर एक बिलाव हुआ और दूसरा चूहा। दूसरी बार एक भयंकर सर्प हुआ और दूसरा नेवला, पश्चात् बाज-बगुला होकर फिर वे दोनों कबूतर हुए। __ - इसप्रकार वे दोनों जीव तिर्यंचगति में अनेक प्रकार के दु:ख भोगते हुए कबूतर पर्याय से मरकर कनकपुर राज्य के सोमभूति पुरोहित के यहाँ पुत्र हुए। उनमें से एक का नाम सोमशर्मा और दूसरे का नाम सोमदत्त था। वे विद्याभ्यास करके विज्ञान में पारंगत हुए। पिता सोमभूति की मृत्यु होने पर छोटे भाई सोमदत्त को पुरोहित का पद मिला। बड़ा भाई सोमशर्मा था। उसने छोटे भाई सोमदत्त की स्त्री लक्ष्मीमति के साथ प्रेम सम्बन्ध स्थापित कर रखा था। यह बात सोमशर्मा की भोली-भाली पत्नी दीपा सोमदत्त को बारम्बार कहती थी कि तुम्हारी दुराचारिणी स्त्री के साथ मेरे पति का अनुचित सम्बन्ध है। यह जानकर सोमदत्त को अत्यन्त वैराग्य हुआ और उसने धर्मसेन मुनि के समीप जिनदीक्षा ले ली। .. ___जब राजा सोमप्रभ को सोमदत्त के दीक्षा ले लेने के समाचार मिले . . तो उसने उसके बड़े भाई सोमशर्मा को पुरोहित का पद दे दिया। . ____इधर राजा सोमप्रभ ने शकटदेश के वसुपाल राजा पर मात्र एक हाथी की चाह पूरी न होने के कारण हाथी प्राप्ति के लिए उस पर चढ़ाई कर दी। संध्या के समय राजा की सेना ने वन में पड़ाव डाला। पुरोहित सोमशर्मा की नजर ध्यानस्थ मुनिराज सोमदत्त (छोटे भाई) पर पड़ी। मुनिराज को देखते ही सोमशर्मा क्रोध में लाल-पीला हो गया और उसने सोमप्रभ राजा से कहा कि आप अपने से बलवान राजा पर चढ़ाई करने निकले हैं, तब इस नग्न मुनि के दर्शन से अपशकुन हुआ है, इस कारण इस मुनि को मारकर इसका खून दशों दिशाओं में अर्पण करके शान्ति विधान करना चाहिये। पुरोहित के हिंसामय वचन सुनकर राजा सोमप्रभ ने कान बन्द कर लिए।
SR No.032266
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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