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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-16/74 अजबराय - सारे नगर में सनसनी है कि आपने शिवपिंडी को उखड़वा कर भगवान शिव की अवहेलना की है। अतः नगर नरेश माधवसिंह ने आपको अपराधी घोषित कर मृत्यु दण्ड दिया है। __ पण्डित टोडरमलजी - कोई बात नहीं। जन्म के साथ मरण के क्षण भी जुड़े हुये हैं। जहाँ संयोग है; वहाँ वियोग भी है। अनिवार्यतः मृत्यु आयगी ही। __ अजबराय - यह मिथ्या आरोप है पण्डितजी ! और राजा का अविवेक पूर्ण दण्ड ! घोर अंधेर !...... आपको स्पष्टीकरण करना होगा। पण्डित टोडरमलजी- (मुस्कुराकर) स्पष्टीकरण ! अजबरायजी ! जब प्रबल वेग से आंधी चलती है तो नीम और बबूल के वृक्षों के साथ आम के मधुर फलों को देने वाले वृक्ष भी धराशायी हो जाते हैं। यह अविवेक की आँधी है अजबरायजी ! ___अजबराय - नहीं, ऐसा अन्याय हम नहीं सह सकते। राजा से प्रार्थना करेंगे। __ पण्डितटोडरमलजी-राजासे प्रार्थना! क्या यह दण्ड किसी और ने दिया है ? अरे भाई जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं, बाड़ ही खेत को खाने लगे; तब प्रार्थना किससे की जाए? अजबराय - उस समय माधवसिंह ने हम सब की बात मान ली थी। अत: फिर एकबार प्रयत्न करने में क्या हानि है ? आज दीवान रतनचंदजी संभवतः इसी कारण शास्त्र सभा में नहीं आ पाये। पण्डित टोडरमलजी - (शान्ति से) देखिये अजबरायजी ! उस समय का उपद्रव श्याम तिवारी का था तो राजा से विनती की गई थी। उस समय समस्त समाज की क्षति हो रही थी। धर्म स्थानों को नष्ट किया जा रहा था। उस समय सामूहिक उपद्रवों को रोकने के लिये हमारी प्रार्थना उचित थी। परन्तु व्यक्ति विशेष के प्राणों की भिक्षा माँगना सर्वथा अनुचित है। समाज हित के लिए इस कुचक्र में प्राणों को त्यागना ही होगा।
SR No.032265
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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