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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-15/54 एक विचारक ने कहा है- 'चेतना का पैदा हो जाना व्यक्तिका जन्म है और व्यक्ति का पैदा होना ही जीवन का प्रारम्भ है।' इसका सद्भाव ही आत्म-जागरण की दिशा, धर्म की दिशा है और यह तत्त्व ही मनुष्य में धर्म को जन्म देकर उसके जीवन का निर्माण करता है। इस सन्दर्भ में एक प्राचीन घटना उल्लेखनीय है, जो इसप्रकार है - -- अभयनन्दि मुनि का धनराज सेठ के यहाँ सानन्द आहार हुआ। आहार के बाद मुनिराज चौकी पर बैठ गये । सेठ की पुत्रवधु ने हाथ जोड़कर महाराज से सविनय प्रश्न किया – 'इतने सबेरे कैसे ?' मुनिराज ने विद्वत्तापूर्ण प्रश्न के भाव को समझ कर उत्तर दिया- 'समय की खबर नहीं ।' फिर मुनिराज ने पूछा - 'बेटी ! तेरी आयु कितनी है ?' उत्तर मिला'तीन वर्ष ।' 'तेरे पति की आयु कितनी है ?' 'कुल एक वर्ष' फिर मुनिराज पूछा 'तेरी सास की आयु कितनी है ?' उसने उत्तर दिया – 'छः माह । ' इसके बाद मुनिराज ने फिर प्रश्न किया - 'बेटी ! और तेरे ससुर की आयु क्या है ?' उत्तर मिला – 'वे तो अभी पैदा ही नहीं हुए।' 'बेटी ! ये सब ताजा खा रहे हैं या बासा ?' उत्तर मिला - 'अभी तक तो बासा खा रहे हैं।' इतनी चर्चा के बाद मुनिराज अभयनन्दि जंगल की ओर चले गये । - यहाँ धनराज सेठ अपनी पुत्रवधु के विचित्र उत्तर सुनकर तथा उनसे अपना अपमान समझ कर पुत्रवधु से बोला- 'अरी मूर्खा ! तूने तो मुनिराज के समक्ष मेरे पूरे परिवार की नाक काट दी। तूने आज पागलपन में इस परिवार का अपमान करने के लिए सारे उत्तर मूर्खपन के दिये हैं, इसलिए तू इसी समय मेरे घर से निकल जा ।' पुत्रवधु ने कहा- 'पिताजी! मैंने सारी बातें सच और सन्मान सूचक कही हैं। आपको विश्वास न हो तो मुनिराज से पूछकर ही निर्णय कर लीजिये ।' तब सेठ ने मुनिराज के पास जाकर इन सब गूढ़ बातों का मतलब पूछा । 'मुनिराज ने कहा - 'सेठजी ! तुम्हारी पुत्रवधु तो बड़ी विदुषी है। उसने पूछा था - 'महाराज सबेरे-सबेरे कैसे ?' अर्थात् आपने इस छोटी-सी उम्र
SR No.032264
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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